-कभी बेस्ट बैंकिंग का अवार्ड मिला था, आज ईडी और विजिलेंस के छापे पड़ रहे
भोपाल। पंजाब महाराष्ट्र बैंक के डूबने के बाद यस बैंक भी मंदी की आंधी में डूब गया है। ऐसा क्या हो रहा है कि एक के बाद एक बैंक डूबने की कगार पर पहुंच चुके है। इसके लिए हमें वर्ष 2016 में जाना होगा। तब ही इसके सही राज खुल सकेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बड़े जोर शोर से नोट बंदी लागू की थी।
तब मोदी जी का कहना था कि यह काले धन पर बड़ा कदम है। हालांकि यह कदम भारत की आर्थिक स्थिति 20 साल पीछे छोड़ गया। अब भारत को कोई अर्थ शास्त्री प्रधानमंत्री नहीं मिलने जा रहा है, जो इस संकट से निकाल सके। यस बैंक की एटीएम की लंबी लाइनों में गरीब तबका लगा हुआ है।
जो छोटे छोटे काम कर जीवन चला रहा है। छोटे छोटे व्यापारी लाइन में लगे हुए है, जो जोर षोर से हिन्दुत्व का नारा बुलंद कर रहे थे। अब हालात ऐसे है कि केंद्र सरकार ने यस बैंक से पैसा निकालने की राषि पचास हजार रूपए तय की है। इस हाल में अब आम आदमी कहां जायेगा।
उसके पास कोइ्र चारा नहीं है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भरोसा दिलाया है कि किसी ग्राहक का पैसा नहीं डूबेगा। लेकिन एक लाख करोड़ से अधिक की रािश को केंद्र सरकार किस तरह से दे सकेगी। इसके लिये कोई प्लान नहीं बताया गया है। अभी कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने स्टेट बैंक आॅफ इंडिया से यस बैंक 49 फीसदी षेयर खरीदने को कहा है। जबकि एसबीआई के पास भी एनपीए का बड़ा भंडार है।
ऐसे में यस बैंक की वित्तीय स्थिति सुधारने के चलते एसबीआई को कहीं लोन नहीं मांगना पड़ जाये। केंद्र की सरकार को हिन्दु मुस्लिम के बजाय अर्थ व्वस्था के सुधार के लिये प्रयास करना चाहिए। यस बैंक से पहले देष के षेयर बाजार की सांसे तब उखड़ी जब एलआईसी के एनपीए पांच साल मे दो गुने से अधिक हो गये। तब भी सरकार ने कहा कि कोई परेषाानी की बात नहीं है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि वर्ष 2007 का समय।
जब दुनिया भर में मंदी थी। अमेरिका के बड़े बड़े बैंक धराषायी हो गये थे। तब भारत की बैंक मजबूती से खड़े थे। क्योंकि तब बैंकों के पीछे मजबूत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी खड़े थे। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नोटबंदी के बाद चेता दिया था कि इस कदम ने भारत को सालों पीछे पहुंचा दिया है।
गरीब आदमी को इसकी बड़ी मार झेलना पड़ेगी। केंद्र सरकार ने भारत की मीडिया को इस तरह से मैनेज किया हुआ है कि वह गरीब की बात करती ही नहीं। जैसे उसे भी हिन्दु मुसलमान के एजेंडे चलाने में आनंद आता हो। सीनियर जर्नलिस्ट रवीश कुमार कहते है कि मीडिया में राइट या लेफट विंग का क्या काम।
मीडिया का काम तो सरकार के कामों का विश्लेषण कर लोगों के सामने सच्चाई को लाना है। जबकि मीडिया उसे दूसरे तरीके से पेश करने में लगा हुआ हैं इससे पहले कि देर हो जाये भारत के लोगों को इस और ध्यान देना चाहिए। कहां गलती हुई और उसे कैसे दूर कर सकते है।