पिछले सत्रह सालों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नौकरी देने के मामले में विफल ही रहे है, प्रदेश में भर्ती प्रक्रिया सदा से विवादित ही रही है. इस वजह से प्रदेश के युवाओं का मुख्यमंत्री पर भरोसा कम ही दिखता है, लेकिन युवाओं को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से ही उम्मीद है, क्योंकि अपने 15 माह की सरकार में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ रोजगार पर कुछ नही कर पाए…
मध्यप्रदेश में 11 महिने बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे है. राज्य की शिवराज सरकार ने चुनाव में जाने से पहले सभी वर्गों को साधने की तैयारी कर ली है. पिछले कुछ चुनावों में रोजगार का मुददा केंद्र में रहा है. 2018 में हुए मप्र, छत्तीसगढ, राजस्थान के विधानसभा चुनावों में युवाओं ने रोजगार के नाम पर वोट डाला था. मध्यप्रदेश में तो ठीक चुनाव के पहले और जब सिंधिया गुट के विधायकों द्वारा भाजपा ज्वाइन करने के दौरान हुए उपचुनाव के समय रोजगार को लेकर प्रदेश के युवाओं ने प्रदर्शन किया था. प्रदर्शन के बाद सरकार ने सक्रिय होकर चुनाव के ठीक पहले धड़ाधड़ रोजगार के नोटिफिकेशन जारी किए थे. जिसका फायदा चुनावों में शिवराज सरकार को मिला. लेकिन युवाओं को इसका खास फायदा नही मिल पाया. क्योंकि नोटिफिकेशन से लेकर चयन प्रक्रिया तक राज्य सरकार के द्वारा बहुत समय लगाया. शिक्षक भर्ती बरसों से पूरी ही नही हो पाई. बात चाहे पीएससी, पीईबी की करे तो उसकी अधिकांश परीक्षाओं में रिजल्ट समय से नही आते है, या फिर परीक्षा किसी न किसी विवाद में पड़ जाती है. अब वर्ष 2023 में चुनाव के पहले शिवराज सरकार के द्वारा एक साल में एक लाख नौकरी देने का भरोसा दिलाया है. परीक्षा भर्ती के नोटिफिकेशन भी आ रहे है, लेकिन पदों को देखकर लगता नही है कि सरकार अपना 1 लाख पदों पर भर्ती का वादा पूरा कर पाएगी. सबसे पहले तो सरकार ने अब तक पीईबी का फिक्स परीक्षा कैलेंडर जारी नही किया है, जिससे कहा जा सके कि तय समय में परीक्षा और चयन प्रक्रिया पूरी हो पाएगी. हालत यह है कि जब भी कोई भर्ती का नोटिफिकेशन आता है, तो युवा पद बढ़ाने की मांग करने लगते है. अभी दिसंबर माह में हुई सहायक पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी (एवीएफओं) की परीक्षा संपन्न हुई है. जिसके बाद छात्र पदों पर वृद्धि की मांग कर रहे है. कमोबेश यहीं हाल सभी भर्ती परीक्षाओं में दिख रहा है. युवाओं के लिए बीते तीन साल किसी बूरे सपने से कम नही बीते है. कोविड काल के दौरान परीक्षाएं नही हुई, इस वजह से वह ओवरएज हो गए. अब केंद्र की भर्ती के लिए वह पात्र नही रह गए. इधर मप्र में शिवराज सरकार ने युवाओं को सभी भर्ती परीक्षाओं में आयुसीमा में 3 साल बढ़ाने का वादा जरूर किया है, लेकिन भर्ती नोटिफिकेशन आयुसीमा में बढ़ोतरी नही की गई है. यहां उल्लेखनीय है कि प्रदेश में रजिस्टर्ड बेरोजगार 30 लाख से ज्यादा युवा है. हम जिन 30 लाख से ज्यादा युवा की बात रहे है, वह पढ़े लिखे है, और सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे है. जबकि इससे कई अधिक युवा बेरोजगार है, जो कम शिक्षित है, उनके पास रोजगार के अवसर भी कम है. वहीं CM Shivraj Singh Chauhan का फोकस रोजगार पर तो दिखता है, लेकिन वह जमीन नही उतर पाता है. उदाहारण के लिए रोजगार मेले लगाकर युवाओं को नौकरी देने की बात की जाती है, जिसके आंकड़े बताए जाते है, लेकिन वह आंकड़े वास्तविकता से परे नजर आते है. युवाओं को मुश्किल से 8 हजार की नौकरी दिलाकर वाहवाही लूटी जाती है. नौकरी के खेल में केवल और केवल युवा पिस रहा है. राज्य सरकार ने जिस एजेंसी को रोजगार देने का ठेका दिया हुआ है, वह भी विवादों में है. सरकार के द्वारा रोजगार पर कोई क्लीयर कट पॉलिसी जारी नहींं की है. जिससे प्रदेश का युवा भ्रम में है. आगामी विधानसभा चुनाव में युवाओं की भूमिका निर्णायक होगी. युवा वाटसअप के भ्रम जाल में नहीं फसते दिख रहे है, वह इसलिए कहा जा रहा है कि सोशल मीडिया के दौर में जब असली मुददों को हटा दिया जाता है, उसी दौर में युवा भी सोशल मीडिया पर नौकरी के मुददे को ट्रेंड करा देते है. इसलिए सरकार को वास्तव में नौकरी देना पड़ेगी, उसके पास इधर-उधर होने का मौका नहीं है. सबसे खास बात तो यह है कि मुख्य विपक्षी दल कांगेस ने अब तक नहींं बताया है कि उनका रोजगार पर प्लान क्या है? इस सब में प्रदेश का युवा फुटबॉल बना हुआ है, उसकी कोई सुनवाई नही हो रही है….