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MP EDUCATION-छह विषयों में से तीन में पास की पात्रता के बाद भी तीन लाख बच्चे फेल

MP EDUCATION- छह विषयों में से तीन में पास की पात्रता के बाद भी तीन लाख बच्चे फेल

-मध्यप्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई

-बच्चों पर सारी जिम्मेंदारी डालने से पहले मंत्री, अफसर, मास्टर की जवाबदेही तय नहीं होना चाहिये

By shailendra tiwari,

भोपाल। मध्यप्रदेश में पिछले पंद्रह सालों से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा की सरकार) है। शिक्षा व्यवस्था में सफलता और असफलता की सीधी जिम्मेंदारी उनकी बनती है।

क्या कोई पूछ सकता है कि पंद्रह साल में क्या काम किए गए, और अगर कोई काम किए भी गए तो प्रदेश में तीन लाख से ज्यादा बच्चे कैसे फेल हो गए? 

ALL RESPONSIBLE FOR MP EDUCATION SYSTEMS –

मध्यप्रदेश में इस असफलता के जिम्मेंदार केवल वो बच्चे ही नहीं है, जो एक परीक्षा में असफल हुए है, बल्कि अब तक भाजपा के 15 साल और कांग्रेस 18 महिनों के समय में जितने भी शिक्षामंत्री बने है, उनकी भी बराबर की जिम्मेंदारी बनती है।

आपको आश्चर्य होगा कि मध्यप्रदेश की दसवीं कक्षा में प्रदेश के तीन लाख से ज्यादा बच्चे फेल हो गए।

अब तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा किसी मंत्री, अफसर, मास्टर की जिम्मेंदारी तय नहीं की।

शिवराज सिंह चौहान स्कूल शिक्षा की तरफ तब ही देख पायेंगे, जब वह सत्ता की राजनीति से फ्री हो जाये।

स्कूल शिक्षा विभाग लगातार बच्चों  को पास करने की नई नई योजनाएं बना रहा है। पहले best of five , फिर  best of four   और अब best of three  ।

अधिक से अधिक बच्चे पास हो जाये-

इन योजनाओं का एक मात्र उददेश्य है कि अधिक से अधिक बच्चे पास हो जाये। लेकिन क्या उन बच्चों के शैक्षिक स्तर को बढ़ाने का कोई ईमानदार प्रयास किया गया।

कोविड-19 के कारण प्रदेश best of three   योजना चलाई गई। छह पेपर में से तीन में पास होना था, फिर भी इतने बच्चे फैल हो गए। प्राइवेट परीक्षा देने वाले दो लाख बच्चों में से सिर्फ 34 हजार बच्चे पास हुए है।

सरकारी स्कूल में शिक्षा के स्तर को सुधारना होगा। प्रदेश में किसी भी हाल में निजी शिक्षा माफियाओं को पनपने नहीं देना होगा।

ऐसा नहीं हुआ तो सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले गरीब लोगों के बच्चे metro शहर और अंग्रेजी माध्यम के बच्चों से बहुत पीछे रह जायेंगे।

जब पढ़ाया ही नहीं रिजल्ट की उम्मीद क्यों-

मध्यप्रदेश में शिक्षा का स्तर क्या है, ये बात किसी से छिपी नहीं है। नौ लाख से ज्यादा बच्चों ने दसवीं की परीक्षा दी।

इसमें तीन लाख बच्चे फेल हो गए। ये प्रदेश की शिक्षा के स्तर को बताने के लिए काफी है। इन बच्चों को को जब स्कूल में पढ़ाया ही नहीं गया तो आप उनसे अच्छे रिजल्ट की उम्मीद कैसे कर सकते है।

इसलिए कोशिश की गई कि आंकडे ही बेहतर कर लिए जाए। अगर पूरे पेपर होते तो छात्रों के फेल होने का आंकड़ा कहां पहुंच जाता। क्या ये चिंता का विषय नहीं है।

15 साल तक क्या किया-

जब कांग्रेस सेे 60 सालों का हिसाब मांगा जाता है, तो प्रदेश की शिवराज सरकार से पंद्रह साल का हिसाब नहीं मांगा जा सकता है क्या?

हम क्यों मंत्री, अफसर और मास्टरों की जिम्मेंदारी तय नहीं करते बच्चे फेल हुए तो अफसरों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है।

समय रहते शिक्षा का स्तर सुधारा नहीं गया तो वह दिन दूर नहीं, जब मप्र का बच्चा पढ़ाई के स्तर में metro  शहरों के बच्चों से बहुत बहुत पिछड़ जायेगा। बच्चे के पिछड़ने की जिम्मेंदारी माता पिता बच्चों पर ही डाल देंगे, पर मांता पिता कभी सरकार से सवाल नहीं करते है।

अफसरों और मंत्रियों के बच्चे पढ़े सरकारी स्कूल में-

मध्यप्रदेश के पालकों को अगर स्कूल शिक्षा (MP EDUCATION)  का स्तर सुधारना है, तो उनको मांग करना होगी कि प्रदेश सरकार के मंत्रियों और आईएएस अफसरों को बच्चों को अनिवार्य तौर पर सरकारी स्कूल में पढ़ाया जाये। क्या भारत में कोई सरकार इस तरह का आदेश निकालने की हिम्मत कर सकती है।

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