NEW EDUCATION POLICY 2020

भारत में अंग्रेजी भाषा जानने वाले नवाब, बाकी सब नौकर है…

भारत में अंग्रेजी भाषा जानने वाले नवाब, बाकी सब नौकर है

नई शिक्षा नीति 2020 में मात़भाषा में बच्‍चों को शिक्षा दिये जाने पर जोर, बच्‍चों में नहीं आयेगी हीन भावना

भोपाल। भारत में अंग्रेजी भाषा का इतिहास बहुत पूराना है। करीब करीब 180 साल से ज्‍यादा का समय निकल चुका है, जब भारत में आधिकारिक रूप से अंग्रेजी भाषा को एडोप्‍ट किया गया।

अंग्रजी कल्‍चर की शुरूआत अंग्रेज विद़वान थॉमस विविंग्‍टन मैकाले के विवरण पर प्रस्‍तुत एक प्रस्‍ताव के बाद होती है।

तत्‍कालीन विलियम बैंटिक सरकार ने मैकाले के प्रस्‍ताव को 7 मार्च 1835 ई. को पारित कर दिया।

इसके बाद भारत की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी हो गई है।

भारत में अंग्रेजी भाषा-जो कलर और खून से तो भारतीय होंगे…

 

भारत में तब अंग्रेजों का शासन था, और अंग्रेज चाहते थे कि उनके लिए प्रशासन तब आसान होगा, जब अधिक से अधिक अंग्रेजी बोलने और समझने वाले भारतीय उनके कार्य में सहयोग करेंगे।

उस समय तक भारत में प्राच्‍य भाषाओं में शिक्षा देने पर जोर था, लेकिन अंग्रेज मानते थे कि प्राच्‍य भाषा उनके लिए भविष्‍य में रोडा बन सकती है।

इसलिए बच्‍चों को अंग्रेजी शिक्षा देने की नई नीति बनाई और लागू कर दी गई।

मैकाले के शब्‍दों में हम भारत में ऐसी शिक्षा पदधति देने जा रही है, जो भविष्‍य में काले अंग्रेज पैदा करेगी।

जो कलर और खून से तो भारतीय होंगे, लेकिन उनके विचार, शिक्षा और प्रतिभा अंग्रेजों के समान होगी।

इसके बाद भारत में अंग्रेजी भाषा को जानने वालों को नवाब माना गया, और बाकी भाषाओं की समझ रखने वालों को नौकर की तरह दर्जा दिया जाता है। जबकि ज्ञान में सब बराबर है।

 

नई शिक्षा नीति उन लोगों ने डिजाइन की, जिनकी शिक्षा अंग्रेजी में हुई

 

भारत में 1968 के बाद से शिक्षा में बदलााव के प्रयास चल रहे है, लेकिन कभी अंग्रेजी को रिप्‍लेस करने का काम नहीं हुआ।

हाल में जारी हुई नई शिक्षा नीति  2020 जरूर भारतीय भाषाओं में ज्ञान देने की वकालत कर रही है।

असल में ऐसा होना संभव नहीं है। वो इसलिए क्‍योंकि अंग्रेजी भाषा में जितना साहित्‍य मौजूद है, हमारी देशी भाषाओं में उतना साहित्‍य नहीं है।

बच्‍चों को मजबूरी में अंग्रेजी का रिफरेंस लेना पडता है। खास बात तो यह है कि नई शिक्षा नीति 2020 उन लोगों ने डिजाइन की है, जिन्‍होंने कभी हिन्‍दी में पढाई नहीं की।

उनकी शिक्षा अंग्रेजी में हुई है, आज हम इस नई शिक्षा नीति 2020 के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, कि क्‍या ये भविष्‍य में रोजगार देने वाली साबित होगी?

 

भारत में अंग्रेजी भाषा को बढावा,हिन्‍दी को कोई पूछता नहीं

 

आप में से अधिकांश बच्‍चे जब स्‍कूल, कॉलेज या नौकरी के लिए इंटरव्‍यू, प्रजेंटेशन देने जाते है, तब पहला शब्‍द अंग्रेजी में बोलते है या अपनी घर की भाषा में।

निश्चितौर पर अंग्रेजी में। अंग्रेजी भाषा ग्‍लोबल भाषा है। बात चाहे आईटी इंडस्‍टी की करे या अन्‍य इंडस्‍टी की। सब में अंग्रेजी भाषा का बोलबाला है।

कार्पोरेट कंपनी अंग्रेजी बोलने वालों को जल्‍दी नौकरी दे देती है, जबकि हिन्‍दी बोलने वालो को नहीं।

 

साफटवेयर भी अंग्रेजी में

 

भारत या विदेश में कोई साफटवेयर का निर्माण होता है, तब उसकी प्राथमिक लैग्‍वेंज अंग्रेजी ही होती है।

उसका यूजर इंटरफेस सरल कर दिया जाता है, अनुवाद कर दिया जाता है। जिससे भारतीय भाषा को जानने वाले भी उसका उपयोग करते है।

लेकिन साफटवेयर की प्राथमिक भाषा स्‍थानीय नहीं होती है।

चाइना, जर्मनी, फ्रांस जरूर अपनी भाषा को प्रमोट करने के लिए उनके यहां  के साफटवेयर को अपनी भाषा में बनाने पर जोर दे रहा है।

इस तरह की पहल भारत सरकार भी करने जा रही है।

 

 रोजगार तो अंग्रेजी देती है

 

यह सवर्विदित तथ्‍य है कि भारत के लोगों को जितना भी रोजगार मिलता है, उसका अधिकांश के्डिट अंग्रेजी भाषा को जाता है।

वजह चाहे IT INDUSTRY’S हो या BOPS । इन सबमें अंग्रेजी आना जरूरी है। भारत का अधिकांश व्‍यापार सर्विस सेक्‍टर पर निभर्र है।

सर्विस सेक्‍टर का अधिकांश काम यूके, यूएस अन्‍य अंग्रेजी जानने वाले देशों से मिलता है। ऐसे में अंग्रेजी के कारण भारत के लाखों लोगों को रोजगार मिला है।

 

नई शिक्षा नीति में 2020 भारत का विचार

 

नई शिक्षा नीति 2020 में कक्षा पांच या उससे अधिक कक्षा आठवीं के बच्‍चों को घर की भाषा या मात़भाषा में शिक्षा देना अनिवाय किया गया है।

इसका पालन सभी निजी एवं सरकारी स्‍कूलों को करना होगा। नीति निर्धारिकों का मानना है कि अवधारणा को घर की भाषा में बच्‍चा अच्‍छी तरह  से समझ जाता है।

इसके अलावा विज्ञान और अन्‍य तकनीकी विषयों की उच्‍चतर गुणवत्‍ता वाल पुस्‍तकें भी  घरेलू या मात़भाषा में उपलब्‍ध कराई जायेगी।

इसके अलावा मेडिकल ओर इंजीनियरिंग की बुक भी घरेलू भाषा में उपलब्‍ध कराई जायेगी। इससे बच्‍चों को विषय को जानने में परेशानी नहीं हो।

 

एक्‍जाम में पैसेज भी अंग्रेजी का

 

भारत से अंग्रेजी भाषा को कम करने की कोशिश भले की जाये, लेकिन यह होता नहीं दिखता है। चाहे रेलवे, बैकिंग, पीएससी या यूपीएससी हो। सभी में पैसेज अंग्रेजी के पूछे जाते है।

शिक्षा का जोर अंग्रेजी बेहतर हो जाये, इस पर जोर रहता है। प्रतियोगिता परीक्षा में भी अच्‍छी हिन्‍दी या घरेलू भाषा में प्रश्‍न पूछे जाये।

क्लिष्‍ट भाषा में नहीं। अनुवादित भाषा में नहीं। इसलिए छात्र अंग्रेजी को चून लेते है।

 

निजी स्‍कूलों का धंधा मंदा नहीं पड जाये

 

गौरतलब है कि भारत में निजी स्‍कूलों का बिजनेस अरबों रूपयों में है। शिक्षा देने के नाम पर निजी स्‍कूल बिजनेस कर रहे है।

इनका बिजनेस किसी दूसरी इंडस्‍टी से ज्‍यादा ही होता है। क्‍योंकि शिक्षा के नाम पर माता पिता हर संभव कोशिश कर बच्‍चे की फीस या अन्‍य सुविधाएं मुहैया करते है।

निजी स्‍कूल तो अंग्रेजी को ही बढावा देते है। माता पिता भी यहीं चाहते है कि उनका बच्‍चा जल्‍दी से जल्‍दी अंग्रेजी बोलने लग जाये।

ऐसे में मुश्किल लगता है कि निजी स्‍कूल बच्‍चों को घरेलू भाषा में शिक्षा दे।

 

सिविल सेवा में हिन्‍दी का हाल

 

2011 के पहले यूपीएससी में हिन्‍दी या अन्‍य घरेलू भाषा के छात्रों का चुने जाने का प्रतिशत बहुत अधिक होता था। वर्ष 2011 में पहली बार यूपीएसी ने सी सेट लागू कर दिया।

इसके बाद तो अंग्रेजी सिविल सेवा पर हावी हो गई। हिन्‍दी बेल्‍ट या अन्‍य देशज भाषा के बच्‍चे सिविल सेवा से बाहर होते चले गए।

नीचे एक टेबिल दी जा रही है। जिसको देखकर आसानी से हिन्‍दी का हाल समझ सकते है।

            वर्ष             प्रतिशत
            2013              17
            2014               2.14
            2015               4.25
            2016               3.45
            2017               4.06
            2018                2.16

 

 

भारत में अंग्रेजी का कितना महत्‍व

 

भारत में अंग्रेजी का महत्‍व इस बात से पता चल जाता है कि हम अंग्रेजी जानने वाले को अधिक अक्‍लमंद समझते है। माना जाता है, कि अंग्रेजी आती है, तो इसे सब आता होगा।

वहीं जब कोई घरेलू या देशज भाषा में बात करता है, तो हम उसे अनपढ समझ लेते है। उसके ज्ञान पर सवाल उठाते है।

एक बात और अब भारत में धीरे धीरे बच्‍चे हिन्‍दी की वर्णमाला गिनती भूलते जा रहे है। बाजार जो भी वस्‍तुओं का उत्‍पादन कर रहा है, उसकी डिटेल केवल और केवल अंग्रेजी में दे रहा है।

समझ सकते है दूसरी भाषा जानने वालों को बाजार या मल्‍टीनेशनल कंपनियां भाव नहीं देती है। अंग्रेजी का महत्‍व तो समझ गए होंगे।

देशज भाषा में बहुत बच्‍चे है, जिनका ज्ञान का स्‍तर बहुत अच्‍छा है। लेकिन उनको वह पैसा या रूतबा हासिल नहीं होता है, जो अंग्रेजी जानने वाले को मिलता है।

भारत में अंग्रेजी भाषा का विकास

भारत में अंग्रेजी भाषा का विकास बहुत पूराना है। 1600 ईसवी में जब अंग्रेज और डचों का भारत आना शुरू हुआ।  उसके बाद से अंग्रेजी कल्‍चर और भाषा हमारे भारत में आ गई।

मुगलकाल के समय भारत में फारसी भाषा का महत्‍व दिया जाता था और वह भारत की प्रथम राजभाषा थी। फारसी में कोर्ट शासन चलता था।

18 वीं सदी आते आते अंग्रेजों ने एक तरह से भारत के अधिकांश राज्‍यों पर अधिकार कर लिया।

इस दौरान अंग्रेज विदवानों द्वारा सोचा गया कि भारत में लंबे समय तक राज करना है तो क्‍या किया जाये।

इस पर कई कमेटियां बनी। अंतत मैकाले कमेटी की सिफारिश पर भारत की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी तय हो गई। स्‍कूल कॉलेज यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी में शिक्षा देने पर जोर दिया गया।

भारत के बाहर जाकर पढाई करने वाले छात्रों को वजीफा या अन्‍य सुविधाएं दी जाने लगी। भारत के आजाद होने के बाद किस भाषा फारसी हिन्‍दी या अंग्रेजी भाषा को प्रथम भाषा माना जाये।

इस पर बहस होने लगी। संविधान सभा के सदस्‍यों ने जब देखा कि भाषा को लेकर भारत में विरोध के स्‍वर उठने लगे है तो उन्‍होंने अंग्रेजी भाषा को प्रथम आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया।

वहीं राज्‍यों को अधिकार दिया गया कि वह अपने यहां दूसरी भाषा अपने अनुसार तय कर सकते है।

 नईशिक्षा नीति पीडीएफ फाइल में-NEW EDUCATION POLICY 2020 IN PDF

 

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