मध्यप्रदेश के 12 हजार से ज्यादा स्कूलों को बंद करने का निर्णय क्यों लिया गया हैं?
भोपाल। मध्यप्रदेश सबसे पहले किसी भी नीति को लागू करने वाला राज्य है। केंद्र से कोई दिशा निर्देश आते नहीं है, उससे पहले लागू करने की जल्दी होती है।
हालांकि स्कूलों का निर्णय जल्दबाजी में नहीं बल्कि सोच समझकर लिया है।
दरअसल एक तरफ केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति लाकर स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर बढाने के लिए जीडीपी का छह प्रतिशत खर्च करने की नीति ला रही है।
वहीं दूसरी तरफ मध्यप्रदेश की सरकार 12 हजार से ज्यादा स्कूलों को बदं करने जा रही है। मप्र सरकार इसकी समीक्षा कर रही है।
राज्य शिक्षा केंद्र ने एक आदेश जारी कर जिले के अधिकारियों से कहा है कि जहां छात्रों की संख्या 0 से 20 है।
ऐसे स्कूलों को समीप के स्कूलों में मर्ज कर शिक्षकों की सेवाएं कार्यालय या अन्य स्कूलों में ली जाये।
स्कूलों को बंद करने का निर्णय क्यों लिया, इस पर राजनीति गर्माई
सूत्रों के अनुसार भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर संभाग के जिलों के संभाग के सबसे अधिक स्कूलों के बंद होने की संभावना है।
इस पर राजनीति तेज हो गई है। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलानाथ नेे वर्तमान मख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से पूछा है कि स्कूलों को बंद करने की इतनी जल्दबाजी क्यों?
वहीं भाजपा के जबलपुर जिले से विधायक व पूर्व मंत्री अजय विश्नोई ने कहा है कि राज्य में शिक्षा व्यवस्था बदहाल है।
उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर कहा है कि योग्य शिक्षकों का आभाव है।
पाठशाला में पढ रहे बच्चों का ज्ञान शोचनीय स्तर तक कमजोर है। अंग्रेजी, गणित और विज्ञान के शिक्षक मप्र में नहीं है।
हैरत की बात तो यह हे कि पंद्रह साल से शिवराज सरकार प्रदेश में है। तब भी शिक्षा की हालत में सुधार नहीं हुआ है।
स्कूलों को बंद करने का निर्णय क्यों लिया, कारण बचेंगे एक हजार करोड
बच्चों के स्कूल बंद करने से राज्य सरकार को करीब एक हजार करोड की बचत हो जायेगी।
प्रदेश में प्राइमरी स्कूल संचालित करने में दो शिक्षक आवश्यकत होते है।
साथ ही रखरखाव व मरम्मत कार्य के लिए करीब तीस हजार रूपये की राशि दी जाती है।
एक शिक्षक का वेतन तीस हजार के आसपास होता है इस तरह प्रतिमाह दो शिक्षकों को 60 हजार वेतन देना होता है।
इसमें मरम्मत और रखरखाव की राशि जोड दे तो साल भर में करीब 8 लाख रूपए तक खर्च हो जाता है।
इस राशि के हिसाब से 12 हजार से ज्यादा स्कूलों के मरम्मत पर एक हजार करोड खर्च हो जाते है। जबकि राज्य सरकार के पास राशि नहीं है।
स्कूलों को बंद करने का निर्णय क्यों लिया, इसके क्या है प्रावधान
स्कूल शिक्षा विभाग के अनुसार मिडिल स्कूल संचालित करने के लिए 12 से ज्यादा छात्र होना आवश्यक है।
वहीं प्राइमरी स्कूल उस स्थिति में संचालित हो सकते है, जब कम से कम 40 छात्र हो।
नए स्कूल खोलना फैशन
मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि नए स्कूल खोलना फैशन बन गया है।
नगण्य विद्यार्थी होने के बाद भी स्कूल खोले जा रहे है। कम विदयार्थी होने पर स्कूल खोलना उचित नहीं है।
नैतिक शिक्षा पर जोर
मप्र में नई शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत नैतिक शिक्षा पर जोर दिया जायेगा। पूर्व में भी नैतिक शिक्षा पर जोर दिया जाता रहा है, इस और आगे बढाया जायेगा।
कक्षा छटवीं का बच्चा सीखेगा हुनर
नई शिक्षा नीति 2020 के तहत मप्र में कक्षा छटवीं के बच्चे को हुनर सीखाया जायेगा।
बच्चे को प्रारंभ से कौशल से जोडा जायेगा, जिससे वह स्कूल पूरी करने पर रोजगार के लायक बन सकता है।
जरूरत हो तभी ले मास्टर डिग्री
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि यदि किसी विषय में विशेषज्ञता हासिल करना है, तब ही पीजी कक्षा में प्रवेश लिया जाये।
सिर्फ फैशन के लिए मास्टर डिग्री ज्वाइन नहीं करे। वहीं कॉलेज खोले जायेंगे, जहां वास्तव में आवश्यकता हो।
100 प्रतिशत प्लेसमेंट मिले
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि तकनीकी ज्ञान हासिल करने वाले सभी बच्चों को प्लेसमेंट का फायदा मिले।
प्राय देखने को मिला है कि कंपनियों को काम करने के लिए लोग नहीं मिलते है, जबकि दूसरी तरफ बेरोजगार की बात सुनाई आती है।
रिपोर्ट कार्ड नहीं प्रोग्रेस कार्ड
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘’निशंक’’ का कहना है कि विधार्थी को रिपोर्ट कार्ड नहीं मिलेगा।
उसे प्रोग्रेस कार्ड दिया जायेगा। विधार्थी स्वयं का मूल्यांकन कर सकता है।
जिस विषय में कम नंबर आए है, उसकी तैयारी करेगा। यह पहली बार किया जा रहा है।
भारत में शिक्षा लेकर बाहर नौकरी नहीं
नई शिक्षा नीति 2020 के तहत यह भी प्रावधान किये जा रहे है कि स्टडी इन इंडिया, स्टे इन इंडिया के तहत भारत के विधार्थियों को भारत में शिक्षा लेकर भारत में काम करने की सलाह दी जायेगी।
नवाचार और शोध कार्यक्रमों को बढावा दिया जायेगा।