UPSC

जब मैं यूपीएससी प्रीलिम्स दे रहा था, तब मेरे सीनियर ने कई किताबों का जिक्र किया और लगा मैं तो सिलेक्‍ट ही नहीं हो पाऊंगा…

जब मैं यूपीएससी प्रीलिम्स दे रहा था, तब मेरे सीनियर ने कई किताबों का जिक्र किया और लगा मैं तो सिलेक्‍ट ही नहीं हो पाऊंगा…

-बहुत पढ़ने के चक्कर में परीक्षा में जिन सवालों का जवाब हमें आता है, हम उनमें कंफ्यूज हो जाते है. इसलिए आपने जो पढ़ा है, उसे बार बार दोहराते रहें, ताकि जो प्रश्न आपको आते है, वे न छूटे. यूपीएससी ऐसी परीक्षा है, जो आपसे निरंतरता मांगती है.

अवनीश कुमार शरण

सिविल सेवाओं में परीक्षा का माध्‍यम हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है. साल 2019 के परिणामों को देखें तो हिंदी माध्यम के टॉपर की रैंक 317 थी. इसका अर्थ है कि 316 रैंक्स गैर हिंदी भाषी उम्मीदवारों के हिस्से आई थी. 317 वें स्थान पर आने वाले कैंडिडेट के लिए यह लगभग असंभव होगा कि उसे आईएएस, आईपीएस या आईएफएस जैसे कैडर मिले हो.यह चिंताजनक स्थिति है कि हिंदी के पहले टॉपर को 317 वीं रैंक मिलती है. 2010 तक हिंदी माध्यम के 45 प्रतिशत छात्र प्रीलिम्स पास कर लेते थे, लेकिन अब यह आंकड़ा महज 10-12 प्रतिशत तक रह गया है. ऐसे में ज्यादातर हिंदी मीडियम के छात्र अपने मीडियम को लेकर भी फिक्रमंद रहते है. लेकिन ऐसा नहीं है कि हिंदी मीडियम होने की वजह से ही आपका परीक्षा परिणाम खराब रहा हो. सिविल सर्विसेज एग्जाम में आखिरकार हिंदी भाषी उम्‍मीदवारों के साथ दिक्‍कतें क्‍या आती है. सबसे पहले तो यह गलत धारणा है कि हिंदी भाषी या गैर अंग्रेजी भाषी छात्रों के साथ यूपीएससी भेदभाव करता है, ऐसा नहीं है. एग्जाम पैटर्न में जहां वक्त के साथ बदलाव आया, उतना छात्रों की तैयारी में नहीं आया. पहले एग्जाम का पैटर्न ट्रेडिशनल था. इसलिए छात्र उसी अनुसार तैयारी करते थे. लेकिन अब प्रीलिम्‍स के करंट अफेयर्स में अप्‍लाइड नॉलेज से जुड1े सवाल ज्यादा पूछे जाते है. सिलेबस भी बदल गया है. इसके लिए तैयारी का तरीका भी बदल जाना चाहिए, और सिलेबस के साथ रिलेवेंट रिपोर्ट, डाटा आदि पढ़े जाने चाहिए. लेकिन उम्मीदवार ज्यादातर रेडीमेड कंटेंट पर ही निर्भर रहते है. बजाय खुद के नोट्स बनाने के.

इस वजह से भी हिंदी माध्यम का परिणाम प्रीलिम्‍स लेवल पर ही खराब है. हालांकि सारी गलती छात्रों की नहीं है. तकनीकी दिक्कतें और भी है. सवालों का हिंदी अनुवाद भी कई बार काफी खराब होता है. उदाहरण के तौर पर एक बार स्‍टील प्‍लांट का हिंदी अनुवाद था इस्पात पौधा.अब इसे तो कोई भी नहीं समझ पाएगा. कई बार तो अनुवाद ऐसे होते है कि फैक्टस ही बदल जाते है. हिंदी के सवालों में जहां कंफ्यूजन है, वहां उलझने से बेहतर है कि उस सवाल को अंग्रेजी में पढ़े, वह स्पष्ट हो जाएगा.यूपीएससी भी यहीं कहता है कि कन्फ्यूजन की स्थिति में अंग्रेजी भाषा को वरीयता दें. यह अच्छी बात है कि हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों की कॉपियां हिंदी माध्यम के शिक्षक ही जांचते है. हालांकि यूपीएससी की तैयारी के लिए जिन मौलिक किताबों की जरूरत होती है, वे सभी अंग्रेजी में ही उपलब्ध है. इस वजह से हिंदी और अंग्रेजी माध्यम के उम्मीदवारों की लेखनी में फर्क आ जाता है.

बहुत से छात्र ऐसा मानते है कि उनका माध्यम हिंदी है, तो सबकुछ हिंदी में ही पढ़ेंगे. उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिये. बेहतर उत्तर लेखन के लिए अंग्रेजी की किताबों को भी पढ़ना होगा. 12 वीं तक की एनसीईआरटी की किताबें जरूर पढ़े. इससे सीसैट में फायदा मिलेगा. बहुत सारे न्‍यूज पेपर में ज्यादा समय नहीं गंवाए. जब मैं यूपीएससी प्रीलिम्स दे रहा था तो मैं अपने एक सीनियर से मिला जो मुझसे पहले से तैयारी कर रहे थे. मिलते ही उन्होंने कई किताबों का जिक्र किया, जो मैंने नहीं पढ़ी थी. मुझे लगा मैं तो बेहतर नहीं कर पाउंगा, लेकिन उसी साल मेरा चयन हो गया. इसलिए क्‍वांटिटि के बजाय क्‍वालिटी पर ध्यान दें.बहुत पढ़ने के बजाय यह देखें कि आप जो पढ़ रहे है, वह प्रासंगिक है या नहीं. हिंदी माध्‍यम के छात्रों को लगता कि अंग्रेजी के छात्र उससे अधिक जानते है, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. यूपीएससी देश की सबसे बड़ी प्रतियोगी परीक्षा है. वह बेस्‍ट का चुनाव करती है, न कि भाषा विशेष के कैंडिडेटस का.

 

 तकनीकी शिक्षा, रोजगार एवं प्रशिक्षण,  छत्‍तीसगढ़ राज्‍य कौशल विकास प्राधिकरण में संचालक के पद पर पदस्‍थ है अवनीश जी.

 

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