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सिविल सेवा परीक्षा में इंटरव्यू में “दलित” पता चला तो सिलेक्शन मुश्किल, केंद्र सरकार की रिपोर्ट में खुलासा… 

सिविल सेवा परीक्षा में इंटरव्यू में दलित पता चला तो सिलेक्शन मुश्किल, केंद्र सरकार की रिपोर्ट में खुलासा… 

– साक्षात्कार लेने वाले अधिकांश अफसर दलित पूर्वाग्रह से ग्रसित, सरनेम से पता चल जाता है दलित है या सामान्य, सामाजिक न्‍याय मंत्री अभी रामदास अठावले है…

भोपाल. देश में दलितों के साथ भेदभाव होना कोई नई बात नहीं है. बरसों बरस से ये होता आया है, और आगे ये खत्‍म होगा, इसके आसार कम ही दिखते है. समाज का एक तबका अब भी ये मानता है कि जातिगत श्रेष्‍ठता होती है, तो कमतर जाति के लोगों को भेदभाव झेलना ही पड़ेगा. आजादी के 74 वर्ष के बाद भी देश में ये हाल बने हुए है. गरीब और छोटी जाति के लोगों को समाज में पर्याप्त स्थान मिले, इसके लिए संविधान में संरक्षण दिया गया है. लेकिन उस संरक्षण के बाद भी देश की सबसे प्रतिष्ठित सिविल सेवा में दलित-आदिवासी समाज के लोगों के साथ भेदभाव हो रहा है. इसका खुलासा सामाजिक न्‍याय मंत्रालय के निर्देश पर किये गये एक अध्ययन रिपोर्ट में हुआ है. दरअसल रिपोर्ट में कहा गया है कि सिविल सेवा परीक्षा के अभ्यर्थियों के नाम छिपा दिये जाये तो ज्यादा दलित अभ्यर्थी परीक्षा पास कर लेंगे. दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (डिक्‍की) ने सिविल सेवा में दलितों की भागीदारी बढ़ाने को लेकर अध्ययन रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट के शोध विभाग से जुड़े पीएसएन मुर्ति का कहना है कि इस रिपोर्ट को जल्द ही सरकार और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को सौंप देंगे. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सिविल सेवा साक्षात्कार परीक्षा के समय दलित उपनाम के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ता है. बताया जाता है कि भारत में नब्बे फीसदी सरनेम ऐसे है, जिससे व्यक्ति की जाति और धर्म का पता आसानी से लग जाता है.

लिखित परीक्षा के समय गोपनीय, सिविल सेवा परीक्षा में इंटरव्यू के समय होता है उजागर

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सिविल सेवा इंटरव्यू में जो विशेषज्ञों का पैनल नियुक्त किया जाता है, वह काफी हद तक दलितों को लेकर पूवागह से ग्रसित रहता है. दलित लिखित परीक्षा तो पास कर लेते है, लेकिन साक्षात्कार के समय उनकी संभावनाएं कम हो जाती है. वहीं सिविल सेवा लिखित परीक्षा में नाम गोपनीय रहता है, लेकिन साक्षात्कार के समय नाम उजागर हो जाता है. इसके कारण दलित आदिवासी छात्रों के साथ अन्याय होता है…

भारत सरकार में केवल एक दलित सचिव

आरक्षण पर लगातार सवाल कर रहे लोगों को इस बात की सच्चाई भी पता चलना चाहिये कि भारत सरकार में 89 सचिवों में से एक ही दलित सचिव है. कुछ ऐसे ही हाल अन्य मंत्रालय और अन्य सेवाओं में भी है. इसके आंकड़े उजागर होते है, तो ये देश के लोगों को पता चल  सकता है कि भारत में दलितों का सरकारी सेवाओं में कितना प्रतिशत है. 0.01 प्रतिशत दलित युवा ही आईएएस, आईएफएस जैसी सेवाओं के लिये चयनित हो पाते है…

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