1773 regulating act in hindi || रेग्यूलेटिंग एक्ट क्या था || इसका भारत पर प्रभाव
Online desk, bhopal
भारत में रेग्यूलेटिंग एक्ट की बहुत बात होती है, छात्र जब भी मार्डन हिस्ट्री पढ़ते है, वह रेग्यूलेटिंग एक्ट को जरूर पढ़ते है, उसके बारे में चर्चा करते है. आज हम आपके लिए रेग्यूलेटिंग एक्ट पर संपूर्ण जानकारी लेकर आए है. यह जानकारी ऑथेंटिक है. इस लेख को विश्वस्तरीय किताबों से लिया गया है. प्रयास किया गया है कि रेग्यूलेटिंग एक्ट (1773 regulating act in hindi ) के संबंध में परीक्षा में पूछे जाने वाले सभी प्रश्न कवर हो जाए, फिर भी छात्रों को रेग्यूलेटिंग एक्ट के चैप्टर पर अधिक अध्यन (Regulating Act 1773 UPSC in Hindi) करने की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जाता है, इसलिए और अन्य स्तरीय बुक का भी अध्ययन करें… सबसे पहले जानते है कि भारत में रेग्यूलेटिंग एक्ट (what is the regulating act of 1773) लाने की आवश्यकता क्यूं पड़ी. एक्ट के लागू होने से पहले भारत में क्या स्थितियां थी, उनका ब्रिटिश सरकार पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी की वो कोन सी कारगुजारियां ब्रिटिश सरकार को पसंद नहीं आ रही थी, उस समय के इतिहासकार क्या लिख रहे थे, इन सारे सवालों के जवाब आपको पोस्ट में मिल जायेंगे. स्क्रॉल कर नीचे जाए….
1770 का भीषण अकाल- 1773 ka regulating act in hindi-ईस्ट इंडिया कंपनी पर संसदीय नियंत्रण कब स्थापित हुआ?
भारत में 1770 में भीषण अकाल पड़ा, जो लिखित इतिहास में सबसे भयानक था, अकाल के कारण भारत की एक बड़ी आबादी खत्म हो गई. अकाल के समय अंग्रेजों से भारतीयों को आशा था कि वह मदद करेंगे, लेकिन अंग्रेजों ने अकाल के समय भी लूटने में कोई रियायत नहीं बरती.अकाल की भीषणता को कम करने के लिए नाममात्र का काम भी नहीं किया. एक समकालीन मुस्लिम इतिहासकार ने अपनी पुस्तक ”सियार-उल-मुत्खैरिन में उल्लेख किया है कि जनता के हितों की अनदेखी करते हुए कंपनी ने अपने अधिकारियों को जनता पर अनंत अत्याचार करने की अनुमति दे दी थी”.एक अंग्रेज लेखक लेकी ने कहा कि ”भारतीयों ने ऐसी कठोर, तीक्ष्ण और निर्दयता संभवत: पहले कभी अनुभव नहीं की थी” उस समय कंपनी के अधिकारी बंगाल से सोना सहित लूट कर इंग्लैंड लोटते रहे. इसकी जानकारी ब्रिटिश सरकार को भी मिल रही थी. इस बीच जब कंपनी में भ्रष्टाचार बढ़ा तो कंपनी की वित्तीय स्थिति बिगड़ने लगी. कंपनी ने बैंक ऑफ इंग्लैंड से ऋण मांगा, बावजूद कंपनी अपने लाभ में बढ़ोतरी बता रही थी. स्थिति को भांपकर लॉर्ड नॉर्थ ने ऋणपत्र को ब्रिट्रिश संसद की स्वीकृति के लिए भेज दिया. जिसके बाद सलेक्ट कमेटी बनी. रिपोर्ट में अत्यधिक विसंगति थी, जिसके बाद ब्रिटिश संसद ने दो अधिनियम पारित किए. प्रथम के अनुसार कंपनी को 4 प्रतिशत ब्याज पर 14 लाख पौंड का कर्ज दिया गया. दूसरे अधिनियम द्वारा रेग्यूलेटिंग एक्ट पारित किया गया.
रेग्यूलेटिंग एक्ट के प्रावधान- (provisions of the regulating act) –रेगुलेटिंग एक्ट के प्रमुख उद्देश्य क्या थे –रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के प्रमुख तत्व क्या थे?-
- इस अधिनियम के अंतर्गत इंग्लैंड में स्वामियों के अधिकरण (court of proprietors) में वोट देने के अधिकार केवल उन लोगों को दिया गया, जो चुनाव से कम से कम एक वर्ष पूर्व एक हजार पौंड के शेअर को स्वामी रहे हो.
- कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स चार वर्ष के लिए चुना जाएगा, और डाइरेक्टरों की संख्या 24 होगी.जिसमें 25 प्रतिशत प्रतिवर्ष अवकाश प्राप्त करेंगे.
- डाइरेक्टरों को यह आदेश हुआ कि ”वे वित्त विभाग के सामने भारत प्रशासन तथा राजस्व संबंधी राज सचिव (secretary of state) के सामने सैनिक असैनिक प्रशासन संबंधी सभा में पत्र व्यवहार प्रस्तुत करना होगा”
- पहली बार ब्रिटिश मंत्री मंडल को भारतीय मामलों का नियंत्रण करने का अधिकार दिया गया, यद्यपि यह अधिकार अपूर्ण था.
- सपरिषद गवर्नर-जनरल को बंगाल में फोर्ट विलियम की प्रेसीडेंसी के सैनिक तथा असैनिक शासन का अधिकार दिया गया. कुछ मामलों में मद्रास तथा बम्बई प्रेसीडेंसी की मॉनिटरिंग भी करने का अधिकार दिया गया.
- अधिनियम में इस बात की भी व्यवस्था थी कि क्राउन आज्ञापत्र के द्वारा एक सर्वोच्च तथा तीन छोटे जजों वाले एक सर्वोच्च न्यायालय (supreme court) की स्थापना की जाए. कंपनी के कार्यकर्ता इसके अधीन कर दिए गए. इस न्यायालय को यह भी अधिकार था कि वह कंपनी की सेवा तथा सम्राट की सेवा में लगे लोगों के विरुद्ध मामले, कार्यवाही अथवा सुनवाई कर सके.इस न्यायालय को इंग्लिश में प्रचलित सभी न्यायिक विधियों के अनुसार न्याय करने के अधिकार दिए गए.इस न्यायालय को प्राथमिक तथा अपील के अधिकार (original and appellate jurisdiction) की अनुमति थी.
- सर एलीजाह इम्पे (sir elijah impey) मुख्य न्यायाधीश तथा चैम्बर्ज लिमैस्टर और हाइड छोटे न्यायाधीश नियुक्त हुए.
- कोई भी व्यक्ति जो कंपनी के अधीन सैनिक तथा असैनिक पदाधिकारी हो, वह किसी भी व्यक्ति से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कोई उपहार, दान, पारितोषिक इत्यादि नहीं ले सकता है.
एक्ट की आलोचना- (criticism of the act)- रेगुलेटिंग एक्ट की क्या कमियां थी?-रेगुलेटिंग एक्ट के दोष
एक्ट ने गवर्नर जनरल तो नियुक्त कर दिया, परंतु उस पर एक परिषद लाद दी. जिससे वह असहाय हो गया. एक्ट में न्यायालय तो स्थापित कर दिया, लेकिन न्यायालय को किस कानून से चलाना है, यह निश्चित ही नहीं किया गया. एक्ट की खामी के कारण व्यवस्था छिन्न भिन्न हो गई और गवर्नर जनरल व परिषद आपस में झगड़ती रही…
importance of the act-रेगुलेटिंग एक्ट का अर्थ-ब्रिटिश शासन काल में संविधान के विकास में कौन सा कानून ऐतिहासिक था?-रेगुलेटिंग एक्ट लागू होने के समय बंगाल का गवर्नर जनरल कौन था
रेग्यूलेटिंग एक्ट के विषय में यह स्वीकार करना पड़ेगा कि किसी भी यूरोपीय शक्ति के द्वारा किसी दूर देश में प्रशासन का प्रथम प्रयास था. भारत में अलग अलग धर्म और मान्यता के लोग रहते थे. उन पर यूरोपीय कानून थोपे नहीं जा सकते थे. ब्रिटिश सरकार नॉर्थ अमेरिका, साउथ अमेरिका में इस तरह से प्रशासन कर रही थी. लेकिन वह भारत के मुताबिक नहीं था. रेग्यूलेटिंग एक्ट अनजान समुद्र में नाव चलाने की भांति था. थोड़े शब्दों में कह सकते है कि अधिनियम अधिक अच्छा प्रशासन स्थापित करने का प्रयत्न था, लेकिन उसे समस्या का पूरा ज्ञान नहीं था. इस कारण से यह असफल हो गया. रेग्यूलेटिंग एक्ट 11 वर्ष तक चलता रहा.फिर 1784 में पिट इंडिया एक्ट पारित किया गया. वारेन हेस्टिंग्स ही ऐसा गवर्नर जनरल था, जिसने इस अधिनियम के अनुसार भारत पर शासन किया.
रेग्यूलेटिंग एक्ट में संशोधन-1773 ka regulating act hindi-1773 regulating act in hindi
अस्पष्ट रेग्यूलेटिंग एक्ट में संशोधन किया गया. जिसमें कुछ नए प्रावधान किए गए, वहीं कुछ प्रावधानों को संशोधित किया गया.
- न्यायालय का अधिकार क्षेत्र स्पष्ट कर दिया गया था, उसे कलकत्ता के सभी नागरिकों पर अधिकार दे दिया गया था.
- अधिनियम में यह भी आज्ञा दी गई थी कि सुप्रीम कोर्ट को अपनी आज्ञाएं तथा आदेश लागू करते समय भारतीयों के धार्मिक तथा सामाजिक रीति रिवाजों का ध्यान रखना चाहिये.
- इसमें यह भी कहा गया कि जो नियम तथा विनियम गवर्नर जनरल तथा उसकी परिषद बनाए, उसे उच्चतम न्यायालय के पास पंजीकृत कराना आवश्यक नहीं है.
पिट इंडिया एक्ट- 1784
- सभी असैनिक, सैनिक तथा राजस्व संबंधी मामलों को एक नियंत्रण बोर्ड (बोर्ड ऑफ कंट्रोल) के अधीन कर दिया गया. जिमसें एक चांसलर ऑफ एक्सचेकर, एक राज्य सचिव तथा उसके द्वारा नियुक्त किए चार प्रीवी काउंसिल के सदस्य होते थे.
- स्वामियों के अधिकरण (court of proprietors) को यह अधिकार नहीं रहा कि डाइरेक्टरों का जो आदेश नियंत्रण बोर्ड द्वारा स्वीकार कर लिया हो, उसे रद्द, निलंबित या समाप्त कर सके. इस अधिनियम के अनुसार बंबई तथा मद्रास प्रेजीडेंसियाां भी गर्वनर-जनरल और उसकी परिषद के अधीन कर दी गई.
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