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Sindhu Ghati ki Sabhyata कितनी पुरानी है, कैसे नष्ट हुई इतनी भव्य और प्राचीन सभ्यता…

Sindhu Ghati ki Sabhyata-सिंधु घाटी की सभ्यता-Sindhu Ghati ki Sabhyata kitni purani hai

 विश्व की प्रथम चार सभ्यताएं कौन सी है, उनके बारे में यहां मिलेगी डिटेल में जानकारी

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sindhu ghati sabhyata kitni prachin hai- लगभग पांच हजार साल पहले मानव सभ्यता चार अलग अलग नदियों की घाटी में स्थापित हुई थी.जैसे टिगरिस और यूफ्रेट्स के तट पर मेसोपोटामिया, नील के तट पर मिस्र सभ्यता, सिंधु के तट पर सिन्‍धु सभ्‍यता तथा हवांग- हो (पीली नदी) के तट पर चीनी सभ्यता. करीब करीब 3500 वर्ष पहले मेसोपोटामिया में पहले शहर का विकास हुआ. इसके बाद मिस्र और भारत में और अंत में चीन में ऐसी प्रवृत्ति देखने को मिली.सभी ऐतिहासिक सभ्यताएं बड़ी नदी घाटियों में स्थित थी. जो कि कृषि उत्पादन के लिए उपयुक्त थी.कृषि कार्य आसान होने के कारण इन सभ्यताओं में लोगों ने विशेष कार्यों लेखन, ताम्र उद्योग, मुहर निर्माण, भव्य भवन निर्माण आदि में विशेष योग्यता हासिल कर ली थी. जानकारी के मुताबिक इंडिया शब्‍द की उत्‍पत्ति ‘इन्डस’ नदी पर आधारित है अर्थात ‘इंडस'(सिन्‍धु) का क्षेत्र… सिंन्‍धु घाटी सभ्‍यता को करीब 3500 वर्ष पुरानी सभ्‍यता कहा जा सकता है… 

Sindhu Ghati ki Sabhyata ke nirmata आर्यों को कहा जाता है. इतिहास में इसको लेकर अलग अलग मत है.

आरंभिक लिखित प्रमाण के अनुसार ईरान से होते हुए भारत की तरफ अपनी लंबी यात्रा में आर्यों ने कभी इतनी विशाल नदी नहीं देखी थी, 2825 ई,पूर्व में फारसी सम्राट डेरियस- प्रथम ने सिन्धु क्षेत्र को जीतकर अपने साम्राज्य का एक प्रांत बना लिया था. सही उच्‍चारित नहीं कर पाने की वजह से फारस वासियों ने सिंधु वासियों को हिन्दू कर दिया. जिसे बाद में यूनानियों ने इंडस प्रचारित किया. ग्रीक और रोमन वासियों के लिए सिन्धु क्षेत्र इंडस का पर्यायवाची बन गया. सिन्ध पर अरब की विजय के बाद पुराने सिन्‍धु से हिन्‍दोस्‍तान शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई. वहां के निवासी हिन्दू कहलाये… इंडिया नाम भारत की सर्वप्रथम सभ्यता- सिन्‍धु सभ्‍यता (sindhu ghati ki sabhyata) के समय से प्रचलित है.हालांकि बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक तक इसके बारे में कोई नहीं जानता था.1920 के दशक में मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खोज हुई. इन शहरों को खोज की शुरुआत में इसे सिन्‍धु घाटी सभ्‍यता कहा जाने लगा. लेकिन बाद में सिन्‍धु घाटी से बहुत दूर इलाके तक ऐसी ही सभ्यता की खोज के बाद इसे सिन्‍धु सभ्‍यता कहा जाने लगा.साथ ही हड़प्पा शहर के नाम पर इसे हडप्‍पा सभ्‍यता कहा जाने लगा.अब तक सौ स्थलों की खोज हुई है. उत्तर में रोपड़ (पंजाब) से दक्षिण में 1100 कि.मी. दूर में भगतराव (गुजरात) तथा पश्चिम में पाकिस्तान ईरान सीमा तक सभ्यता का फैलाव मिला है. नवीनतम खोजों के अनुसार सबसे उत्तर का स्थल मांदा (जम्मू-कश्मीर) तथा सर्वाधिक दक्षिण का स्थल दायमाबाद  (महाराष्ट्र) है. रेडियो कार्बन तारीखों के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीनतम कृषिगत बस्ती मेहरगढ़ है. जबकि भारत में सबसे प्राचीन बस्ती बालाथल है…

सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष कहाँ मिले है? सिंधु घाटी की सभ्यता का विकास कहाँ हुआ है?-sindhu ghati sabhyata kitni prachin hai

  • मोहनजोदड़ो  (सिंधु) सिंधु नदी के किनारे पर बसा हुआ है.
  • हडप्‍पा (पंजाब,पाकिस्‍तान) रावी नदी के बांए किनारे पर है.
  • चन्हूदड़ो (सिंधु) सिंधु नदी  के बाएं किनारे पर है, तथा यह मोहनजोदड़ो से लगभग 130 कि.मी. में है.
  • कालीबंगन (राजस्थान) घग्‍गर नदी के किनारे पर था. यह नदी सैकड़ों वर्ष पहले सूख गई.
  • लोथल (गुजरात) खंभात की खाड़ी के सिरे पर है.
  • बनवाली (हरियाणा) विलुप्त सरस्वती नदी के किनारे पर था.
  • सुरकोटदा (गुजरात) कच्‍छ के रन के किनारे पर है.
  • नवीनतम उत्खनित शहर, धोलावीरा (गुजरात) कच्छ जिले में है.

मोहनजोदड़ो-

मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार सर्वाधिक महत्वपूर्ण इमारत है. नगर दुर्ग के बीच स्थित है.इस स्नानागार में ईंट निर्माण कार्य असाधारण एवं सुंदर है.इसकी सतह पक्की ईंटों की है. जिसे जिप्सम तथा मोर्टार द्वारा जोड़ा गया है. यह धार्मिक स्नान का स्थान रहा होगा.यहां से प्राप्त विशाल धान्य कोठार यहां की सबसे बड़ी इमारत है. इसकी उपस्थिति से एक केंद्रीय कर वसूली वाली सत्ता की उपस्थिति का पता चलता है. 

हड़प्‍पा- 

1921 में उत्खनित किया जाने वाला यह प्रथम सिंधु स्थल है. इस सभ्यता के नाम पर सिन्‍धु सभ्‍यता को हड़प्पा सभ्यता कहा गया है. यहां का धान्य कोठार, नगर दुर्ग क्षेत्र से बाहर, लेकिन इससे सटे हुए पश्चिम में स्थित है.यह नदी के काफी नजदीक है.

चन्हूदड़ो-

यह एकमात्र सिंधु शहर है, जिसमें नगर दुर्ग नहीं है. मोहनजोदड़ो की तरह यहां भी कई बार बाढ़ आने के साक्ष्‍य मिले है.

कालीबंगन-

यह दो सिन्‍धु शहरों में से एक है. जहां से आद्य- हडप्पा तथा हड़प्‍पा संस्‍कृतीय संस्‍तर प्राप्‍त हुए है. आद्य- हड़प्‍पा काल में खेत जोते जाते थे.लेकिन हड़प्पा काल में उन्हें नहीं जोता जाता था, बल्कि खोदा जाता था. नगर दुर्ग में पुरातत्वविदों ने दो चबूतरे खोजे है, जो यज्ञ करने के काम आते होंगे.

लोथल-

ईटों के कृत्रिम गोदी बाड़े वाला यह एक मात्र सिंधु शहर है, यह सिंधु वासियों का मुख्य बंदरगाह रहा होगा. चावल की खेती का प्राचीनतम उदाहरण लोथल से प्राप्‍त हुआ है. इसके अलावा एकमात्र स्थल अहमदाबाद के निकट रंगपुर है, जहां से चावल का भूसा प्राप्त हुआ है.

सुरकोतदा-

यह एकमात्र सिन्धु स्थल है. जहां से वास्तव में घोड़े के अवशेष प्राप्त हुए है.यह पत्थर के टुकड़ों की दीवार से घिरा हुआ था, जिसके कोनों पर तथा बड़ी दीवारों के बीच वर्गाकार बुर्ज बने हुए थे.

धौलावीरा-

सिन्‍धु शहरों की खोज में नवीनतम है. यह नगर गुजरात में स्थित है. यह अन्य शहरों की तरह दो नहीं तीन भागों में बंटा हुआ है. इसके दो भागों की मजबूत घेरा बंदी की गयी थी.

सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषता क्या थी? sindhu ghati sabhyata ki visheshtaye

  1. sindhu ghati ki sabhyata  में ग्रिड प्रणाली के अनुसार योजनाबद्ध नगर योजना जिसमें गलियां तथा सड़के एक दूसरे को लगभग समकोण पर काटती है.जिसके अनुसार शहर कई आयताकार खंडों में विभाजित हुआ है. शहरों की योजना में एकरूपता स्पष्ट थी… जबकि यह प्रणाली मिस्र तथा मेसोपोटामिया में अज्ञात थी. 
  2. हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा कालीबंगन के नगर योजना के दो विशिष्ट तत्‍व है. नगर के पश्चिमी भाग में मिट्टी की ईंटों के ऊंचे चबूतरे पर नगर दुर्ग, जिसका अक्ष उत्‍तर से दक्षिण की और है, तथा पूर्वी भाग में निचला शहर है, जो मुख्यतः- आवासीय क्षेत्र रहा होगा. 
  3. सभ्यता की विशेषता है कि पक्की ईंटों का बड़े पैमाने पर प्रयोग हुआ है, जबकि पत्थर के मकानों का अभाव है. स्नानागार में काटी गई ईंटों का प्रयोग होता था. कुओं का निर्माण फनाकर (वेज शेप)  ईंटों से होता था, तथा ठीक (true) मेहराब का प्रयोग नहीं होता था, लेकिन ईटों में टोडा कृत  (कोरबेलेड) मेहराब का प्रयोग व्‍यापक होता था.
  4. नालियों को ढकने के लिए तराशे गए चूना पत्थर की पट्टियों का कभी कभी प्रयोग होता था.चपटी छतों के लिए लकड़ियों का प्रयोग होता था.
  5. भूमिगत जल निकासी प्रणाली थी, जो सभी घरों को नालियों के नाले से जोड़ती थी. ये नाले ईंट अथवा पत्थर के पटटों से ढके होते थे. जिसमें मेनहोल भी बने होते थे.
  6. नगर दुर्ग के नीचे निम्न शहर आम जनता का निवास था.घरों में सामान्यतः: बगल के दरवाजे होते थे, तथा मुख्‍य गलियों की और खिड़कियां भी नहीं होती थी. 

sindhu ghati ki arthvyavastha -सिन्धु घाटी सभ्यता का मुख्य व्यवसाय क्या था?

सिन्‍धु घाटी में मुख्यतः: चावल की खेती के प्रमाण सिर्फ लोथल और रंगपुर (गुजरात) से प्राप्त हुए है. गेहूं की दो प्रजाति उपजाई जाती थी.क्‍लब ह्रीट तथा भारतीय ड्वार्फ ह्रीट.उत्खनन में अब तक गन्ना उपजाने के प्रमाण प्राप्त नहीं हुए है.हालांकि संभवत: इसका उत्पादन होता था. सिंधु वासियों को विश्व में सर्वप्रथम कपास उगाने का श्रेय दिया जाता है. कालीबंगन से परिपक्व हड़प्पा के शुरू के काल की खेती की सतह प्राप्त हुई है. जो भवनों के मलबे से ढकी हुई थी. इस तरह दो दिशाओं में एक दूसरे से समकोण बनाते हुए हल चलाए जाने के चिन्ह अब भी सुरक्षित है. इस चिन्ह से लगता है कि लकड़ी के हल का उपयोग हुआ होगा. एक अन्य पशु जिसकी अस्थियां कई स्‍थलों से प्राप्त हुई है, वह भारतीय सूअर है.भैंस की अस्थियां भी प्राप्त हुई है. ऊंट की अस्थियां सिर्फ कालीबंगन से प्राप्‍त हुई है. इसी तरह सिंधु घाटी के लोग बहुमूल्य धातू जैसे सोना अफगानिस्तान, फारस तथा दक्षिण भारत से, तथा तांबा बलूचस्तिान, अरब से आयात करते थे. उल्लेख करना आवश्यक है कि सुमेरिया तथा सिंधु सभ्यता के बीच व्यापारिक संपर्क के कई साहित्यिक प्रमाण उपलब्ध है. सुमेर के ग्रंथो में ‘मेलूहा’ से व्यापारिक संबंधों की चर्चा है, जो सिंधु क्षेत्र का प्राचीन नाम है. सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की मुद्रा के बारे में कोई जानकारी नहीं है. सभी विनिमय संभवत: वस्तु विनिमय प्रणाली द्वारा किए जाते थे. बैलगाड़ी तथा भारवाही पशुओं का प्रयोग थल मार्ग में होता था.लोथल के गोदीबाड़े के अलावा समूद्री तथा नदी यातायात के प्रमाण कई मुहरों तथा टेराकोटा आकृतियों से मिलते है. टेराकोटा के एक जहाज का आकार लोथल से प्राप्त हुआ है. जिसमें मस्तूल लगाने के लिए सुराख बना हुआ है.

सिंधुघाटी सभ्‍यता और उनकी संस्‍कृति व समाज-sindhu ghati sabhyata ki lipi  thi

डी.डी. कौशांबी के अनुसार पुरोहित शासक हुआ करते थे. लेकिन आर.एस. शर्मा के अनुसार व्यवसायी वर्ग शासन करता था. सिंधु घाटी सभ्‍यता में मुख्‍य पुरूष देवता पशुपति महादेव (आद्य‍ शिव) हुआ करते था. जिसे मुहरों में योग की मुद्रा में बैठा हुआ, तीन मुखों एवं दो सींगों से युक्त दिखाया गया है.मुख्‍य देवी मातृ देवी (पृथ्वी देवी) थी. सभ्‍यता में लिंग पूजा के पर्याप्त प्रमाण है, जिन्हें बाद में शिव के साथ जोड़ा गया है.सिंधु वासी देवताओं की पूजा वृक्षों (पीपल आदि) तथा पशुओं (बिना कूबड़ का सांड आदि) के रूप में भी करते थे.वे भू्त प्रेतों में विश्वास करते थे, तथा उनसे रक्षा के लिए ताबीज का उपयोग करते थे… हड़प्पा/सिंन्‍धु घाटी की लिपि  को चित्र लिपि माना जाता है. क्‍योंकि इसमें चिड़ियां, मछली तथा विभिन्न प्रकार की मानव आकृतियां बनी हुई है. हड़प्पा वासियों की भाषा अभी भी अज्ञात है, और यह तब तक अज्ञात रहेगी, जब तक उनकी लिपि पढ़ नहीं ली जाती. सभ्यता में मुहरों का उपयोग होने के प्रमाण है.मुहरें सेलखड़ी (मुलायम पत्थर) की बनी हुई है. मुहरों का उद्देश्य संभवत: संपत्ति के स्‍वामित्‍व का संकेत है. सिंधु घाटी सभ्यता में पत्थर तथा धातु से बनी हुई मूर्तियों के कुछ नमूने प्राप्त हुए है. पत्थर की मूर्तियों में सर्वोत्तम उदाहरण मोहनजोदड़ो से प्राप्त सेलखड़ी निर्मित दाढ़ी वाले व्यक्ति का है, जिसके वस्त्र आभूषण सुसज्जित है.हड़प्पा से प्राप्त दो मूर्तियों से एक छोटा  एवं (चार इंच ऊंचा) लाल बलुआ पत्थर का नग्न पुरुष धड़ है, तथा दूसरा भी नग्न एवं छोटी, धूसर रंग की नृत्य मू‍द्रा की प्रतिमा है. मिट्टी के सादे बर्तन अधिकतर लाल मिट्टी के बनाए जाते थे. ज्‍यातितीय आकृति, वृत्‍त, वर्ग तथा त्रिभूज , जानवरों की आकृतियां, चिड़िया, सांप या मछली हड़प्‍पा के बर्तनों पर अधिक बनाई जाती थी. हड़प्पावासी व्यावसायिक तथा निर्माण कार्यों में माप-तौल का प्रयोग करते थे. तौल के रूप में प्रयुक्त कई चीजें प्राप्त हुई है. तौल पद्धति की एक श्रृंखला 1,2,4,8 से 64 इत्यादि की तथा 16 के दशमलव गुणजों थी.हड़प्पावासी माप की रैखिक प्रणाली के जनक थे. जो कि अर्थशास्त्र के अंगुल के बराबर था.जिसका प्रचलन अभी तक भारत में हो रहा है. मोहनजोदड़ो में अंतिम संस्कार की तीन विधियां थी. पूर्ण दफन, आंशिक दफन (शव को जंगली जानवरों तथा चिड़ियों के सामने कुछ दिन छोड़कर कुछ अस्थियों का दफ्न) तथा दाह संस्कार के बाद दफ्न…

हड़प्‍पा संस्‍कृति का पतन और मत

  1. आयों द्वारा विनाश- व्‍हीलर व गार्डन
  2. भीषण बाढ़ द्वारा नष्ट- मार्शल, मैके व एसआर राव
  3. मोहनजोदड़ो में आगजनी द्वारा विनाश- डी.डी. कौशांबी
  4. वर्षा की कमी से कृषि व पशुपाल का विनाश- ऑरेल स्टाइन
  5. भूकंप द्वारा विनाश-डेल्स
  6. जलप्‍लावन एवं भूतात्विक परिवर्तनों के द्वारा विनाश- दयाराम साहनी
  7. ओलावृष्टि एवं जलवायु परिवर्तनो द्वारा विनाश-ऑरेल स्टाइन व अमलावद घोष
  8. प्राकृतिक आपदाओं द्वारा विनाश – कैनेडी
  9. महामारी द्वारा विनाश- कलकत्ता व कराची के शव परीक्षक
  10. प्रशासनिक शिथिलता के कारण पतन- सर जॉ मार्शल

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