कांग्रेस की सरकार में संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के साथ ही सरकारी भर्ती में 50 प्रतिशत तक मौका देने के लिए बनाई थी कमेटी, भाजपा राज में क्या हुआ?
online desk, bhopal
मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार में ऊर्जा विभाग में पदस्थ संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के लिए एक साल में तीन से ज्यादा बैठक हुई थी. 6 नवंबर 2020 को तत्कालीन ऊर्जा मंत्री प्रियव्रत सिंह ने संविदा कर्मचारियों की मांग को लेकर बैठक बुलाई थी. जिसमें संविदा कर्मियों को नियमित करने के लिए कमेटी बनाने का निर्णय हुआ था. यूनाईटेड फोरम के पदाधिकारियों के द्वारा बताई गई सत्तर प्रतिशत मांगों पर तत्कालीन ऊर्जा मंत्री के द्वारा स्वीकृति दे दी थी. साथ ही जिन कर्मचारियों को विभिन्न कारणों से नौकरी से निकाला गया था, उनको वापस लेने के निर्देश भी दिये गये थे. बैठक में प्रियव्रत सिंह ने कहा था कि संविदा कर्मचारियों के विरूद्व बगैर जांच के कार्यवाही नहीं होना चाहिये. इसके अलावा अधिकारी वर्ग में रिक्त पदों पर होने वाली भर्ती में 30 प्रतिशत और कर्मचारियों के पद पर 50 प्रतिशत पदों में संविदा कर्मियों को मौका देने की बात कहीं गई थी. उस समय यह प्रतिशत क्रमश: 25 और 40 था. संविदा कर्मचारियों को चिकित्सा सुविधा देने की बात पर भी सहमति बन गई थी. बीते एक साल से मप्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर से पूछा जाना चाहिए कि अब तक संविदा कर्मियों को नियमित क्यों नहीं किया गया. क्या उनको नियमित करने की सरकार की मंशा है? भाजपा की सरकार को कर्मचारियों को साफ बता देना चाहिये कि नियमित करने का वादा कांग्रेस सरकार का था, उसे भारतीय जनता पार्टी की सरकार के द्वारा पूरा नहीं किया जायेगा. संविदा कर्मियों को नियमित करने की बात तो दूर है, उनको इलाज तक नहीं मिल पा रहा है. पूर्व ऊर्जा मंत्री प्रियव्रत सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर से संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों को कोविड-19 योद्वा कल्याण योजना में शामिल कर, उन्हें योजना का लाभ देने की मांग की है, जिस पर राज्य सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया है…
सरकार से नाराज है बिजली कर्मचारी
विभिन्न कंपनियों में पदस्थ संविदा और आउटसोर्स बिजली कर्मी सरकार से खासे नाराज है. वजह बीते एक साल से कोरोना काल में सतत रूप से दिन रात अपनी सेवाएं दे रहे है. कोविड-19 संक्रमण और बिजली दुर्घटनाओं से कई कर्मचारियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है, लेकिन उनको नियमित कर्मचारी की तरह सुविधाऍं नहीं दी जा रही है. कई वर्षों से आउटसोर्स कर्मचारी कलेक्टर रेट पर काम कर रहे है, जबकि इस दौरान महंगाई आसमान छू चुकी है, बावजूद राज्य सरकार ने उनके वेतन भत्ते में किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं की है. संविदा कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों के बराबर वेतन दिया जाता है, लेकिन आउटसोर्स के साथ वेतन को लेकर भेदभाव किया जाता है.