1857 ke vidroh ka tatkalin karan kya tha-1857 ka vidroh, 1857 ka vidroh history in hindi, 1857 ka vidroh in hindi, 1857 ka vidroh aarambh hua, 1857 ka vidroh hindi me, 1857 ka vidroh history, 1857 का विद्रोह क्यों असफल रहा
Online desk, bhopal
भारतीय आधुनिक इतिहास में 1857 का विद्रोह ऐसा चैप्टर है, जहां से UPSC, BANK, RAILWAYS, SSC, PSC, PROFESSIONAL EXAMINATION BOARD की परीक्षा में लगातार प्रश्न पूछे जाते रहे है, और आगे भी पूछे जाते रहेंगे. भारत का आधुनिक इतिहास जिसे मॉर्डन हिस्ट्री भी कहा जाता है, वह सभी परीक्षाओं के सिलेबस में होता है. इस लिहाज से इस चैप्टर को तैयार करने के लिए अभ्यर्थियों को बहुत मेहनत करना पड़ती है, जिससे इस चैप्टर से कोई सवाल परीक्षा में पूछा जाता है, तो वह प्रश्न का बड़ी आसानी से उत्तर दे सके.इस पोस्ट में हम 1857 के विद्रोह के बारे में उन सभी प्रश्नों की तैयारी करा देंगे, जो परीक्षा में पूछे जाते है. इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपको 1857 विद्रोह को अलग से पढ़ने की आवश्यकता नहीं होगी. इसमें हम 1857 ke vidroh ka tatkalin karan kya tha, विद्रोह के संबंध में इतिहासकारों के मत, 1857 का रिव्यू, विद्रोह के कारण, विद्रोह की शुरुआत, प्रसार, विद्रोह की असफलता के कारण, विद्रोह का प्रभाव और बाद में बनने वाली नीतियां व उसका भारत पर असर जैसे सभी चैप्टर पर विशेष जानकारी उपलब्ध करायेंगे….
1857 vidroh की शुरूआत और उसका प्रसार-1857 ka vidroh history in hindi-1857 ka vidroh aarambh hua-अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी की क्रांति का तात्कालिक कारण क्या था?-अंग्रेजों ने 1857 के विद्रोह को कुचलने के लिए क्या क्या किया?1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण था
उस समय अंग्रेज सरकार ने चर्बी वाले कारतूस के प्रयोग को मंजूरी दी थी, जिसकी जानकारी भारतीय सैनिकों को मिल गई थी. जब सैनिकों ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया, तो उन पर अनुशासनहीनता का अपराध लगाकर उन्हें दंड दे दिया गया. अलग अलग जगहों पर चर्बी वाले कारतूस का विरोध शुरू हो गया था. 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर में एक सैनिक मंगल पांडे ने चर्बी वाले कारतूस का प्रयोग न करते हुए इसके खिलाफ अपने एजुडेंट (Adjutant) पर हमला कर दिया और उसकी हत्या कर दी. इसके बाद बाद अंग्रेज सरकार ने 34 वीं एन.आई. रेजीमेंट को खत्म कर दिया और अपराधियों को दंड दिया. इधर मई, 1857 में 85 सैनिकों ने इन कारतूस का प्रयोग करने से इंकार करते हुए 10 मई को सैनिकों ने खुला विद्रोह कर दिया और अपने अधिकारियों पर गोली चला दी. ये सैनिक अपने साथियों को मुक्त कराकर दिल्ली की और चल पड़े. विद्रोहियों ने 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर लिया.कुछ अंग्रेज अफसरों ने प्रतिरोध जताया, लेकिन वह पराजित हुए.विद्रोही सैनिकों ने बहादुर शाह जफर के महल और नगर पर अधिकार कर उन्हें भारत का सम्राट घोषित कर दिया. जैसे ही विद्रोही सैनिकों के हाथ में दिल्ली आई, वैसे ही विद्रोह शीघ्र ही समस्त उत्तरी भारत और मध्य भारत में फैल गया. लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली, बनारस, झांसी और बिहार सहित कई राज्यों तक विद्रोह हो गया. इस दौरान कई भारतीय शासक अंग्रेजों के प्रति वफादार बने रहे. रणनीतिक वहज से दिल्ली बहुत महत्वपूर्ण थी, अंग्रेज उसे हर स्थिति में वापस पाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने पंजाब से सेनाएं बुलाई और उत्तर की तरफ से आक्रमण कर दिया. अंग्रेजों के आक्रमण के सामने विद्रोही सैनिकों ने जबरदस्त युद्ध किया, लेकिन वह हार गए. इस तरह सितंबर, 1857 तक अंग्रेजों का फिर से दिल्ली पर कब्जा हो गया. बहादुर शाह जफर को बंदी बना लिया और उनके दो पूत्रों और एक पोते को गोली से उड़ा दिया…इसके बाद लखनऊ, कानपुर और झांसी में भी विद्रोह हुआ. झांसी की रानी और तात्या टोपे ने ग्वालियर की और अभियान किया,जहां उनका स्वागत हुआ, लेकिन सिंधिया ने राजभक्त रहने का निर्णय लिया. 1858 में अंग्रेजों के साथ लड़ते हुए झांसी की रानी वीरगति को प्राप्त हुई और तात्या टोपे किसी तरह बच निकले. अप्रैल 1859 में सिंधिया के एक सामंत ने तात्या टोपे को पकड़ लिया और उसे अंग्रेजों के हवाले कर दिया, अंग्रेजों ने उसे फांसी पर लटका दिया.बरेली में खान बहादुर खान ने स्वयं को नवाब घोषित किया, बिहार में भी एक स्थानीय जमींदार जगदीशपुर के कुंवर सिंह ने विद्रोह करते हुए स्वयं को राजा घोषित किया, परंतु कर्नल नील ने इस विद्रोह को दृढ़ता पूर्वक दबा दिया, विरोधियों को फांसी पर लटका दिया. इस तरह जुलाई 1858 तक विद्रोह को पूरी तरह दबा दिया गया…
विद्रोह की असफलता के कारण- cause of the failure of the revolt- 1857 vidroh ke asafalta ke karan-1857 का विद्रोह क्यों असफल रहा- 1857 ke vidroh ka tatkalik karan tha?
1857 ka vidroh के असफल होने की वजहें स्थानीय, सीमित और कुसंगठित होना था. बम्बई, मद्रास की सेनाएं राजभक्त रही,नर्मदा नदी के दक्षिण में थोड़ा बहुत विद्रोह हुआ.अंग्रेजों को नेपाल की सहायता, अफगानिस्तान के शासक दोस्त मोहम्मद की मदद मिली.जॉन लारेन्स ने पंजाब को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में रखा.अन्य राज्य कम प्रभावित हुए. उस समय अंग्रेजों के पास विद्रोहियों की तुलना में आधुनिक शस्त्र थे. भारतीय विद्रोहियों के पास बंदूकें बहुत कम थी, वह प्राय: तलवारों और भालों से लड़ रहे थे.जबकि अंग्रेजी सेना एनफील्ड राइफल से लैस थी. 1857 के पहले अंग्रेजों ने भारत में विद्युत तार व्यवस्था का फैलाव कर दिया था. इससे अंग्रेजों के पास सूचनाएं बिजली की गति से पहुंच रही थी. जबकि विद्रोहियों के पास सूचना पहुंचाने का वहीं पुराना तरीका था, जिसमें बहुत समय लग रहा था. 1857 के विद्रोह का स्वरूप मुख्यतः: सामंतवादी था, जिसमें कुछ राष्ट्रवाद के तत्व भी शामिल थे.अवध और रूहेलखंड के तथा अन्य उत्तरी भारत के सामंतवादी लोगों ने विद्रोह का नेतृत्व किया. जबकि अन्य सामंतवादी राजाओं जैसे पटियाला, जीन्द, ग्वालियर और हैदराबाद ने इस विद्रोह को रोकने में अंग्रेजी की पूरी सहायता की. यूरोपीय इतिहासकारों ने ग्वालियर के मंत्री सर दिनकर राव और हैदराबाद के मंत्री सालारजंग की राजभक्ति की बहुत सराहना की है. संकट के समय कैनिंग ने कहा था कि ”यदि सिंधिया भी विद्रोह में शामिल हो जाते तो मुझे कल ही बिस्तर गोल करना होगा”. राजभक्ति के कारण निजाम, सिंधिया, गायकवाड़ और राजपूत राजाओं को पुरस्कार भी मिले. वहीं विद्रोह की असफलता के कारणों में कृषक और निम्न जाति के लोगों ने कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभाई. और उस समय अंग्रेज सेनाओं को बेस्ट कमांडर लीड कर रहे थे.
विद्रोह के कारण- cause of revolt-vidroh ke karan-1857 ka vidroh in hindi-1857 ke vidroh ka tatkalin karan kya tha?
एंग्लो इंडियन इतिहासकारों ने सैनिक असंतोष और चर्बी वाले कारतूस को ही विद्रोह का प्रमुख माना था, जबकि आधुनिक इतिहासकारों ने बताया है कि प्लासी के युद्ध 1757 से लेकर 1857 तक अंग्रेजों की नीतियों के कारण विद्रोह हुआ है. चर्बी वाले कारतूस ने विद्रोह के लिए चिंगारी का काम किया. कुछ प्रमुख कारणों पर विस्तार से चर्चा करने जा रहे है…
>>राजनैतिक कारण-
1857 ka vidroh के पीछे राजनीतिक कारण भी है.एक एक कर भारतीय रियासतों को व्यपगत नीति के अंतर्गत हड़पा गया.भारतीय राजाओं को उत्तराधिकारी घोषित करने का अधिकार भी नहीं दिया गया.जिन राजाओं के यहां उनके पुत्र नहीं थे, वह किसी अन्य को उत्तराधिकारी घोषित नहीं कर सकते थे.सतारा, जैतपुर, संबलपुर, बघाट, उदयपुर, झांसी, तंजौर और कर्नाटक के नवाबों की राजकीय उपाधियां समाप्त कर दी गयी. इससे भारतीय राजे मानने लगे कि सभी रियासतों का अस्तित्व खतरे में है. वहीं अंग्रेजों ने मुसलमानों की भावनाओं को भी गंभीर रूप से ठेस पहुंचाई. मुसलमानों राजाओं को महल और राजकीय उपाधि छोड़ने पर मजबूर किया गया. वे समझते थे कि अंग्रेज तैमूर के वंशजों को नीचा दिखाना चाहते है. एजेक्जैंडर डफ ने लिखा है कि बीते सौ सालों से समस्त भारत में लोग निजी घरों में और मस्जिदों में तैमूर के वंश, जिसका प्रतीक वे दिल्ली के सम्राट को मानते है, उसकी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते है, उसे अंग्रेजों के द्वारा नष्ट किया जा रहा है… इसके बाद मुसलमानों ने अंग्रेजों के खिलाफ बढ़चढ़ कर विद्रोह किया और मारे गए…
>>प्रशासनिक और आर्थिक कारण-
भारतीय रियासतों के खत्म होने के कारण भारतीय अभिजात वर्ग (अमीर वर्ग) शक्ति और पदवीं से वंचित हो गया. सारे बड़े पद अंग्रेज अधिकारियों के लिए रिजर्व थे, ऐसे में वर्षों से उच्च पदों पर रहने वाले ये अभिजात वर्ग के लोग अंग्रेजों के खिलाफ हो गए. कंपनी कृषकों के साथ भी अन्याय कर रही थी. कर वसूलने में सेना का उपयोग होता था, किसान आए दिन विद्रोह करते थे.तालुकदार खत्म कर दिए. जमीनें नीलाम कर दी. कई बार ऐसे लोग जमीन खरीद लेते थे, जिनको कृषि कार्य की जानकारी नहीं थी. वह किसानों से जबरदस्ती कर वसूलते थे. 1853 में अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों पर कार्ल मार्क्स ने लिखा ” यह अंग्रेजी घुसपैठिया था, जिसने भारतीय खड्डी (loom) को तोड़ दिया,चरखे का नाश कर दिया. सूती कपड़ा उद्योग का नाश होने से कृषि पर अधिक बोझ बढ़ गया, जिससे अंग्रेजों के खिलाफ भावना और मजबूत हुई.
>>सामाजिक और धार्मिक कारण-
जैसे जैसे अंग्रेजों का शासन बढ़ता जा रहा था, अंग्रेज लगातार भारतीयों के प्रति असभ्य रवैया अपना रहे थे. अंग्रेज हिंदुओं को बर्बर और मुसलमानों को कट्टरपंथी, निर्दयी मानते थे. अंग्रेज लगातार भारत में ईसाईकरण को बढ़ावा दे रहे थे. 1850 में पास किए गए धार्मिक अयोग्यता अधिनियम (religious disabilities act) के द्वारा हिन्दू रीति रिवाज में परिवर्तन लाया गया. अर्थात धार्मिक परिवर्तन से पुत्र अपने पिता की संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है. इस कानून का लाभ ईसाई बनने वालों को मिला था. यह अफवाह फैल गई थी कि लॉर्ड कैनिंग को विशेष आज्ञा दी गई है कि वह पूरे भारत को ईसाई बना दे…
>>सैनिक कारण एवं आर्थिक कारण जो 1857 की क्रांति के लिए जिम्मेदार थे?
भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के प्रसार से सैनिकों की सेवा शर्तों पर प्रतिकूल प्रभाव हुआ. उन्हें अपने देश से दूर सेवा करने जाना पड़ता था, और इसके लिए अतिरिक्त भत्ता भी नहीं मिलता था. 1856 में केनिंग की सरकार ने सामान्य सेना-भर्ती अधिनियम (GENRAL SERVICE ENLISTMENT ACT) पारित कर दिया गया. जिसके अनुसार बंगाल सेना के सभी भावी सैनिकों को यह स्वीकार करना होता था कि जहां कहीं भी सरकार को आवश्यकता होगी, वे वहीं पर कार्य करेंगे. सैनिकों की निशुल्क डाक सुविधा समाप्त कर दी गयी. इन सब कारणों से भारतीय सैनिकों के मन में अंग्रेजों के खिलाफ नफरत भर गई और वे सही समय का इंतजार करने लगे.
विद्रोह का प्रभाव और भारत में अंग्रेजी नीतियों में परिवर्तन-impact of revolt and changes in the british policy in india-1857 vidroh ke karan niti me badlav
- इस विद्रोह में बड़ी संख्या में हिंदुओं और मुसलमानों ने भाग लिया था. उनकी एकता अंग्रेजी सरकार के लिए चुनौती बन गई थी. भविष्य में किसी ऐसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़े, इसके लिए अंग्रेजी सरकार ने फूट डालो और राज करो की नीति का जानबूझकर अनुसरण किया.
- 1857 विद्रोह के बाद 1858 में भारत सरकार अधिनियम के द्वारा भारतीय प्रशासन का नियंत्रण कंपनी से छीनकर ब्रिटिश राजमुकुट (crown) को सौंप दिया गया. इस अधिनियम के द्वारा एक भारतीय राज्य सचिव (secretary of state for india) का प्रावधान किया गया और उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की मंत्रि परिषद (advisory council) का गठन होना था.जिसमें से 8 सदस्य सरकार के द्वारा मनोनीत होते थे,और शेष सात सदस्य कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के द्वारा चुने जाते थे.
- महारानी की घोषणा के बाद क्षेत्रों का सीमा विस्तार (extension of territorial possessions) की नीति समाप्त कर दी गई.स्थानीय राजाओं के अधिकार, गौरव तथा सम्मान को अपने समान ही संरक्षण का विश्वास दिलाया गया.
- 1861 में भारतीय जानपद सेवा अधिनियम (indian civil service act) बनाया गया. जिसके अनुसार प्रत्येक वर्ष लंदन में एक प्रतियोगी परीक्षा हुआ करेगी, जिससे सिविल सर्विसेस में भर्ती की जा सके.हालांकि नियम ऐसे बनाए गए जिससे अंग्रेज ही इस परीक्षा में आईसीएस बन सके.
- विद्रोह में भारतीय सैनिकों मुख्यत: उत्तरदायी थे, इसके बाद बंगाल प्रेसीडेंसी में यूरोपीय और भारतीय सैनिकों का अनुपात 1:2 कर दिया गया.वहीं बंबई प्रेसीडेंसी में सैनिकों का अनुपात 1:3 रखा गया. जिन स्थानों में मुस्लिम बाहुल्य थे, वहां भय का भाव पैदा किया गया.सेना और तोपखाने में ऊंचे पद केवल यूरोपीय के लिए रिजर्व किए गए.
1857 विद्रोह का रिव्यू- पुनर्वेक्षण- 1857 vidroh ka review
1857 के विद्रोह के संबंध में इतिहासकारों के मत अलग है. फिर भी लगभग सभी इतिहासकारों का कहना है कि उस समय तक भारत के लोगों ने अपने आप को एक देश या राष्ट्र का सदस्य नहीं माना था.
- पंडित जवाहरलाल नेहरू का कहना था कि वह तो वास्तव में सामंतवादी लोगों का विद्रोह था, जिसमें विदेश विरोधी भावनाओं से प्रेरित लोग भी शामिल हो गए.
- प्रोफेसर सेन का कहना था कि विद्रोह तथा क्रान्तियां मुख्य रूप से अल्पसंख्यक वर्ग का ही कार्य होता है.
- एक इतिहासकार डॉक्टर जूडिथ एम. ब्राउन इस तथ्य तथा दुराग्रह को स्वीकार करती है, कि जब वह कहती है ”उस समय बहुत से अंग्रेज इन घटनाओं को मुख्यतः: सैनिक विद्रोह ही मानते थे, क्योंकि यदि वह कोई और कारण देते तो उनके भारत के राज्य पर संदेह लग जाता”.
- वहीं एक अमेरिकी विद्वान प्रोफेसर जी.एफ. हचिसन कहते है कि सैनिक विद्रोह कहने के पीछे आशय यह है कि इसे सीमित कर दिया जाये, यह केवल भारतीय सैनिकों तक सीमित रह जाए, अंग्रेजों की इसमें कोई भूमिका साफ नहीं दिखे. एक
- अन्य अमेरिकी इतिहासकार स्टेनले वॉलपट का मत थोड़ा भिन्न है, वह कहते है कि ”यह केवल सैनिक विद्रोह से अधिक था”
- सर जॉन लारेन्स और सीले के अनुसार ”’वह केवल सैनिक व्रिदोह था, तथा अन्य कुछ नहीं”.
- एल.ई.आर.रीज के कथन से साफ होता है कि ”यह धर्मांधों का ईसाइयों के विरुद्ध युद्ध था”
- टी.आर.होम्स ने अंग्रेज इतिहासकारों के इस विचार को लोकप्रिय बनाने का प्रयत्न किया है कि यह तो ”’बर्बरता तथा सभ्यता के बीच युद्ध था”
- सर जेम्स आउट्रम और डब्ल्यू टेलर ने इस विद्रोह को हिन्दू-मुस्लिम षड्यंत्र का परिणाम बताया है.
- बेंजामिन डिजरायली , जो समकालीन रूढ़िवादी दल के प्रमुख नेता थे, इसे एक ”राष्ट्रीय विद्रोह” कहा है.
- अशोक मेहता ने अपनी पुस्तक द ग्रेट रिबेलियन में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि 1857 के विद्रोह का स्वरूप राष्ट्रीय था.
- वीर सावरकर ने भी इस विद्रोह को सुनियोजित स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी है, यह बताने का प्रयत्न किया है कि स्वतंत्रता संग्राम का रिर्हसल था 1857 का संग्राम…
- आर.सी मजूमदार ने 1858 के विद्रोह का विश्लेषण अपनी पुस्तक सिपोय म्युटिनी एण्ड द रिवोल्ट ऑफ 1857 में दिया है.उनके तर्क का मुख्य आश्य यह है कि सन सत्तावन का विद्रोह स्वतंत्रता संग्राम नहीं था.
- एक अन्य भारतीय विद्वान डॉ. एस.बी. चौधरी ने अपनी पुस्तक सिविल रिबेलियन इन द इंडियन म्युटिनीज में सैनिक विद्रोह के साथ असैनिक विद्रोह का विस्तारर्पूवक विश्लेषण करने तक ही सीमित रखा है…
- एस.एन सेन कहते है कि सैनिक विद्रोह अनिवार्य था. कोई भी राष्ट्र सदा के लिए विदेशी दासता में नहीं रह सकता है.
#modern history
#1857 revolt
#impact of 1857 revolt