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मध्‍यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण पर शिवराज सरकार उलझन में, कमजोर पैरवी का लग रहा आरोप…15 मार्च से डे टू डे होगी हियरिंग….

मध्‍यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण पर शिवराज सरकार उलझन में, कमजोर पैरवी का लग रहा आरोप…15 मार्च से डे टू डे होगी हियरिंग….

-पूर्व में नेता प्रति पक्ष कमल नाथ ओबीसी वर्ग के साथ भेदभाव का लगा चुके है आरोप, ओबीसी वर्ग की बढ़ सकती है नाराज़गी

Online desk, bhopal

पूर्व मुख्‍यमंत्री कमलनाथ के कार्यकाल में ओबीसी वर्ग को प्रतियोगिता परीक्षाओं में 27 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था. यह प्रावधान लागू हो पाता, उससे पहले कांग्रेस की सरकार चली गई. साथ ही कोर्ट में इस प्रावधान पर 22 याचिकाएं लग गई. इन याचिकाओं पर लगातार सुनवाई चल रही है. हालांकि शिवराज सरकार ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने के मामले में ज्‍यादा गंभीर नहीं दिख रही है. इस मामले में शिवराज सरकार उलझन में नजर आ रही है. इससे पूर्व में भी शिवराज सरकार पर कोर्ट में ओबीसी आरक्षण पर मजबूती  से पक्ष नहीं रखने का आरोल लगा था. जिसके बाद आनन फानन में शिवराज सरकार ने महाधिवक्‍ता पुरूषेन्‍द्र कौरव और सालिसिटर जनरल तुषार मेहता को कोर्ट में रहकर पक्ष रखने को कहा था. इस दौरान ओबीसी आरक्षण पर कई सुनवाई हो चुकी है. मप्र हाईकोर्ट के द्वारा 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण पर स्‍टे दिया है. इससे प्रदेश में ओबीसी आरक्षण की सीमा 14 प्रतिशत हो गयी है. यह मामला अभी कोर्ट में चल रहा है. दिसंबर माह 2020 में मप्र लोक सेवा आयोग के द्वारा पीएससी प्री का परिणाम इसी आधार पर जारी किया है. पीएससी का कहना है कि जैसे ही कोर्ट के निर्णय आयेंगे, अंतिम परिणाम तब जारी होंगे. 17 फरवरी 2021 को ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी एवं ईडब्‍ल्‍यूएस को 10 फीसदी आरक्षण की वैधता को चुनौती देने वाली सभी 29 याचिकाओं की सुनवाई मुख्‍य न्‍यायाधीश श्री मो.रफीक और श्री संजय द्विवेदी की युगलपीठ के द्वारा की गई. ओबीसी आरक्षण पर कुछ याचिकाओं में राज्‍य सरकार के द्वारा जवाब दाखिल नहीं किया. उन प्रकरणों में शासन को जवाब दाखिल करने का समय दिया गया है. सभी प्रकरणों की अंतिम बहस के लिये  तिथि 15 मार्च 2021 निर्धारित की गयी है. इस दिन रोजाना सुनवाई होगी. मख्‍य न्‍यायाधीश महोदय ने रिटन समीशन तैयार रखने को कहा है और कोर्ट में बहस के पूर्व प्रस्‍तुत करने को कहा है. 

मप्र में ओबीसी आरक्षण बनता है चुनावी मुददा

 प्रदेश में ओबीसी आरक्षण चुनावी मुददा रहा है. चुनाव के समय ओबीसी वर्ग को लूभाने के लिये सरकारें ओबीसी को अधिक से अधिक प्रतिनिधित्‍व देने की बात कहती है, लेकिन चुनाव बीत जाने के बाद उस पर अमल करना भूल जाती है.

माई के लाल ने सत्‍ता से बाहर कर दिया था

2018 में हुए विधानसभा चुनाव में माई के लाल वाला बयान बीजेपी को बहुत नुकसान कर गया था. एससी/एसटी/ओबीसी के खिलाफ दूसरे वर्ग ने एक पक्षीय वोट दिया था. इससे ग्‍वालियर चंबल क्षेत्र में कांग्रेस को जबरदस्‍त तरीके से फायदा हुआ था, और कांग्रेस की मप्र में सरकार बनी थी. इसके बाद भाजपा और शिवराज सरकार ने ऐसे बयानों से किनारा कर लिया. इसके बाद से ओबीसी आरक्षण से खुद को सीधे जोड़ने से बच रही है सरकार.

मध्‍यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण पर कांग्रेस के आरोप

पूर्व मुख्‍यमंत्री कमलनाथ ने 18 जुलाई को भेजे अपने पत्र में कहा था कि प्रदेश में एससी, एसटी और ओबीसी की जनसंख्‍या का प्रतिशत 86 है। अकेले पिछडे वर्ग की जनसंख्‍या 53 प्रतिशत है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्‍य पिछडा वर्गों के आरक्षण अधिनियम में संशोधन कर पिछडा वर्ग के लिए शासकीय सेवाओं में आरक्षण का प्रतिशत 14 से बढाकर 27 किया था। कमलनाथ ने कहा कि माननीय न्‍यायालय के समक्ष प्रभावी पक्ष रखा जाना चाहिये।

 

 

 

 

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