तीन दिनों में नौकरियों के बारिश नहीं हुई तो वोटों का सूखा पक्का है…
भोपाल। बारिश के मौसम में नौकरियों का सूखा रहा तो, आने वाले उपचुनावों में प्रत्याशियों को वोटों का सूखा देखने को मिल सकता है.
दरअसल अगले तीन दिन में केंद्रीय चुनाव आयोग 29 सितंबर शाम छह बजे मप्र सहित राज्यों में उपचुनावों की तारिखों की घोषणा कर देगा.
चुनावी घोषणा के बाद आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी. आचार संहिता लागू होने के बाद सत्ता दल कोई नहीं घोषणा नहीं कर पायेगा.
इस लिहाज से अगले तीन दिन मध्यप्रदेश के बेरोजगारों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाले है.
मप्र के बेरोजगारों ने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर इन तीन दिनों में नौकरियों की बारिश नहीं हुई तो उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशियों को वोटों को सूखा पक्का देखने को सकता है.
हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में 25 हजार सरकारी नौकरी देने का भरोसा दिया है.
वैसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान घोषणाओं के लिए जाने जाते है, इसलिए जल्दी उन पर भरोसा नहीं कर पाते है.
सोशल मीडिया की चैट देख तो पचास प्रतिशत से अधिक छात्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नौकरी देने के वादे को केवल घोषणा ही मान रहे है.
ग्वालियर चंबल में दिख सकता है नौकरियों का असर
उपचुनाव की 16 सीटें ग्वालियर चंबल क्षेत्र की है. यहां का युवा लंबे समय से पुलिस भर्ती का इंतजार कर रहा है.
पुलिस आरक्षक के तीन हजार से ज्यादा के पदों पर भर्ती की घोषणा सरकार कर चुकी है.
वैसे इस क्षेत्र के युवा करीब पांच हजार पदों पर भर्ती की मांग कर रहे है. वैसे अभी तक पुलिस भर्ती का नोटिफिकेशन नहीं आया है.
इसलिए छात्र अभी संशय में है. राज्य सरकार भी जानती है कि बेरोजगारी के आंदोलन को गंभीरता से नहीं लिया तो 16 सीटें जीतना मुश्किल हो जायेगा.
यहां से भाजपा 16 सीटें हारी तो सरकार बचाना मुश्किल होगा. ऐसे में राज्य की भाजपा सरकार कोई चांस लेते हुए नहीं दिख रही है.
अनुकंपा की नौकरियों मेें नियुक्ति के लिए भी इंतजार
चुनावी मौसम में बड़ी संख्या में अनुकंपा नियुक्ति के प्रकरणों के निपटारा होने की उम्मीद जताई जा रही है.
अनुकंपा के लिए कोई घोषणा हो सकती है. संभवत- राज्य सरकार दैनिक वेतन भोगियों को अनुकंपा देने को लेकर आधिकारिक घोषणा कर सकती है.
इसका घोषणा का बेसब्री से इंतजार है.
संविदा -आउटसोर्स का क्या होगा
कांग्रेस की सरकार ने संविदा कर्मचारियों को नियमित करने का वचन दिया था.
कांग्रेस की सरकार इस वचन को पूरा करने के लिए आगे बढ भी रही थी, लेकिन सरकार चले जाने के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया.
संविदा कर्मचारी मुख्यमंत्री शिवराज सिहं चौहान और भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया से गुहार लगाकर नियमित करने के वचन को पूरा करने की मांग कर रहे है.
ग्वालियर में आउटसोर्स और संविदा के हजारों कर्मचारी काम कर रहे है. सरकार ने इनकी मांग नहीं मानी तो ग्वालियर में इसका असर देखने को मिल सकता है.
बेरोजगारी चुनावी मुददा बन सकता है
आगामी उपचुनाव में बेरोजगारी चुनावी मुददा बन जाये, इसके आसार नहीं दिखते है. दोनों ही प्रमुख दल बेरोजगारी के मुददे पर चुनाव नहीं लड़ना चाहते है.
2018 में बेरोजगारी का मुददा कांग्रेस के फेवर में गया था. लेकिन 15 महिने की सरकार में बेरोजगारी के लिए कांग्रेस के द्वारा कोई खास काम नहीं किया.
वहीं भाजपा इसलिए इसे मुददा नहीं बनने देना चाहती है कि अगर ये मुददा बना तो 15 साल में बेरोजगारी बढने का दाग उस पर हावी हो जायेगा.
हो सकता है कि इसका फायदा कांग्रेस की सरकार को मिल जाए. इसलिए सत्ता दल बेरोजगारी को किसी भी हाल में मुददा नहीं बनने दे सकता है.
केवल नोटिफिकेशन की उम्मीद
बेरोजगार युवा भी जानते है कि इस दौरान केवल नौकरी के नोटिफिकेशन आ सकते है.
नौकरी की ज्वाइनिंग उपचनाव के बाद ही मिलेगी. इसको देखते हुए युवा भी चाहते है कि कम से कम नोटिफिकेशन आ जाये, तो तैयारी में जट सकते है.
बेरोजगारी चरम पर होने के बाद भी रोजगार बोर्ड का गठन नहीं
हैरत की बात तो यह है कि राज्य सरकार ने बेरोजगारी को अब तक गंभीरता से नहीं लिया है.
बेरोजगारी को गंभीरता से लेती तो सरकार मप्र रोजगार निर्माण बोर्ड में पूर्णकालिक अध्यक्ष नियुक्त कर देती.
पूर्व में हेमंत देशमूख का कार्यकाल सफल रहा था. उम्मीद थी कि सरकार सबसे पहले रोजगार बोर्ड में अध्यक्ष नियुक्त कर बेरोजगारी को दूर करने का प्रयास करती.
लेकिन अभी तक बोर्ड का अध्यक्ष किसी को नहीं बनाया है. बोर्ड बिना अध्यक्ष के ही चल रहा है.
5000 nahi 15000 ki maang kar raha hai yuva kaha se laya hai ye 5000 ka figure