GOVERMENT JOBS IN MP-मप्र के बच्चों को ही मिलेगी मप्र में नौकरी, चुनावी जुमला तो नहीं
निर्णय का प्रदेश के लाखों युवा कर रहे स्वागत
दुरगामी परिणाम को लेकर कोई चर्चा नहीं
भोपाल। अब मध्यप्रदेश में नौकरी केवल उनको मिलेगी जो मप्र का हो। मप्र के संसाधनों पर पहला हक मप्र के बच्चों का है।
कानून बनाकर ऐसी व्यवस्था करेंगे, जिसमें मप्र के बच्चों को नौकरी मिल सके।
यह कहना है, मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का। हालांकि मुख्यमंत्री ने स्पष्ट नहीं किया है कि कानून किस तरह का होगा।
उसमें क्या क्या प्रावधान होंगे। उन प्रावधानों को किस तरह कार्यान्वित किया जायेगा।
पंद्रह अगस्त के दिन इसकी घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने भाषण में की थी।
मंगलवार को केबिनेट के बाद सीएम ने पिफर से दोहराया है कि नौकरियां केवल मप्र के बच्चों को मिलेगी।
लेकिन यह नहीं कहा कि रिक्त पदों पर भर्ती कब से प्रारंभ की जायेगी।
मप्र में नौकरी का सबसे अधिक असर महाराष्ट के लोगों पर
एक अनुमान के मुताबिक 1956 से लेकर 1990 तक विभिन्न राज्यों से पचास लाख लोग मप्र में नौकरी की तलाश में आकर बसे है।
इनमें अधिकांश महाराष्ट, यूपी, और मप्र की सीमा से लगे राज्यों से आए है।
प्रदेश में महाराष्ट से आए लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है।
प्रदेश के मालवा, चंबल, भोपाल और नर्मदा संभाग में बहुतायत महाराष्ट के लोग रहते है।
इनका कहीं ना कहीं महाराष्ट से कनेक्शन है।
मप्र में नौकरी का कानून बनता है, तो क्या अन्य राज्य नहीं बनाएंगे ऐसा कानून
मप्र राज्य केवल अपने लोगों को नौकरी देने का कानून लाता है तो अन्य राज्य ऐसा कानून नहीं लाएंगे।
जिससे मप्र के युवा बिहार, यूपी, महाराष्ट, छत्तीसगढ में नौकरी से वंचित नहीं रह जायेंगे।
इस तरह एक तरह से सभी राज्य अपने अपने संसाधनों पर उनके यहां रहने वाले लोगों को अवसर देने का प्रयास करेंगे।
इससे राज्यों में रहने वाले लोगों में कहीं ना कहीं वैमन्स्यता का भाव दिखने लगेगा।
मप्र में नौकरी में अन्य राज्यों के युवाओं वर्चस्व
वर्तमान में मध्यप्रदेश में निकलने वाली नौकरी में अन्य राज्यों से आए छात्रों का वर्चस्व देखा जाता है।
बहुत बडी संख्या में ये लोग नौकरी में सिलेक्ट हो जाते है।
खासतौर पर पुलिस भर्ती में अन्य राज्यों के युवा को मौका मिल जाता है।
इस बात से प्रदेश का युवा नाराज रहता है कि उसकी बजाय अन्य राज्यों के युवा सरकारी नौकरी में सिलेक्ट हो जाते है।
सरकार के इस कदम से युवा प्रसन्न है।
फार्मूला क्या होगा
क्या फार्मूला होगा कि जिससे तय किया जायेगा कि प्रदेश में बसे लोगों को प्रदेश का माना जायेगा।
वर्तमान में मूलनिवासी मांगा जाता है, लेकिन दलालों के कारण प्रदेश के बाहरी लोग फर्जी तरीके से मूलनिवासी प्रमाणपत्र बना लेते है।
पांच साल प्रदेश में निवास किया हो तो उसका मूल निवासी प्रमाणपत्र बन जाता है।
ऐसे में सरकार संभवत शिक्षा को लेकर ही प्रावधान करेगी।
दसवीं या बारहवीं की परीक्षा पास किए हुए युवाओं को प्रदेश में नौकरी देने का प्रावधान किया जायेगा।
इसके अलावा 1956 या राजधानी बनने के बाद या 1990 तक आए लोगों को प्रदेश का मूल निवासी मान लिया जायेगा।
महाराष्ट के लाखों एससी, एसटी को नहीं मिलता मप्र में नौकरी का फायदा
जानकारी के अनुसार 1956 के समय मप्र में रहने का प्रमाण देने पर ही प्रदेश के बाहर से आए लोगों के एससी, एसटी के जाति प्रमाणपत्र बनाए जाते है।
इस नियम को लागू होने से प्रदेश में लाखों एससी, एसटी के युवाओं को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है।
लंबे समय से लोग इसके लिए प्रयास कर रहे है कि उनको जाति प्रमाणपत्र का लाभ दिया जाये।
1956 के नियम के कारण मूल राज्य में भी प्रमाणपत्र नहीं बन पाते है।
इस कारण से बाहर से आए लोग ना तो अपने राज्य के रह पाते है, और ना ही दूसरे राज्य के।
रिक्त पदों को भरने की कोई समय सीमा नहीं
प्रदेश के छात्रों को नौकरी देने के लिए कानून बनाए जाने का सभी लोग स्वागत कर रहे है।
लेकिन राज्य की शिवराज सरकार ने अब तक प्रदेश में रिक्त पदों को भरने की समय सीमा नहीं बताई है।
जेल प्रहरी वैकेंसी को छोड दे तो राज्य में लगभग तीन साल होने के आ रहे है, नई वैकेंसी नहीं आई है।
सरकारी नौकरी की संख्या बढाने की बात नहीं
राज्य में कोई भी सरकारी नौकरी की संख्या बढाने की बात नहीं कर रहा है।
अगर सरकारी नौकरियों की संख्या बढाई जाती है तो इस कदम की नौबत ही नहीं आती।
कहा जाता है कि यह केवल चुनावी मुददा है। प्रदेश में अगले माह संभावित 27 सीटों पर उपचुनाव होने वाले है।
ग्वालियर चंबल संभाग के युवा जनरल प्रमोशन नहीं दिए जाने को लेकर सरकार से खासे नाराज है।
इन नाराज युवाओं को साधने के लिए इस तरह के कानून लाने की बात कहीं गई है।
वक्त बतायेगा इस कदम से सरकार को कितना राजनीतिक फायदा होता है।
ओवरएज उम्मीदवारों पर किसी का ध्यान नहीं
मप्र में पुलिस कांस्टेबल, सब इंस्पेक्टर भर्ती समेत अन्य वर्दीधारी पदों पर समय पर भर्तियां नहीं होने पर उम्मीदवार ओवरएज हो गए है।
उम्मीदवार वर्दीधारी पदों के लिए आयुसीमा 37 वर्ष करने की मांग कर रहा है।
कमलनाथ की सरकार ने जेल प्रहरी के लिए आयु सीमा 35 करने की घोषणा की थी।
तत्कालीन सामान्य प्रशासन मंत्री डॉ गोविंद सिंह ने फाइल पर हस्ताक्षर कर केबिनेट मंजूरी के लिए भेज दी थी।
उस दौरान सरकार गिर गई। इसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग और जेल विभााग ने ध्यान नहीं दिया।
ओवरएज छात्रों का कहना है कि हमारा क्या दोष है, जो हमें नौकरी नहीं मिल पाई।
ऑल इंडिया लेवल पर भर्ती निकालने से नुकसान
प्रदेश के युवाओं का कहना है कि पिछले कई साल से प्रदेश में ऑल इंडिया लेवल की भर्तियां निकल रही है।
हाल ही में जेल प्रहरी की भर्ती भी ऑल इंडिया स्तर पर निकाली गई है।
इससे प्रदेश का युवा सरकारी नौकरी में सिलेक्ट नहीं हो पाता है। भर्ती प्रदेश स्तर पर निकालना ही बेहतर होगा।
रोजगार पंजीयन बेअसर
प्रदेश में सरकारी नौकरी के लिए रोजगार कार्यालय में जीवित पंजीयन अनिवार्य है।
लेकिन बाहरी राज्य के युवा भी नौकरी की चाह में रोजगार पंजीयन करा लेते है।
पिछले पांच सालों में बाहरी राज्यों के ढाई लाख से अधिक युवाओं ने पंजीयन कराया है।
इस साल 55 हजार से अधिक युवा पंजीयन करा चुके है।
इतनी बडी संख्या में बाहरी युवा रोजगार कार्यालय में पंजीयन करायेगा तो प्रदेश के युवा कैसे नौकरी पाएंगे।
इन राज्यों में क्या है व्यवस्था
जानकारी के मुताबिक उत्तरप्रदेश में वहीं उम्मीदवार सरकारी नौकरी में आवेदन कर पाते है, जो लगातार पांच वर्ष तक स्थायी रूप से वहां रहता हो।
निवास का प्रमाण पत्र भी देना होता है। इसके अलावा गुजरात ने गुजराती भाषा, महाराष्ट ने मराठी भाषा को अनिवार्य किया हुआ है।
छत्तीसगढ की शासकीय परीक्षा में भाग लेने के लिए दसवीं बोर्ड उस प्रदेश से उत्तीर्ण करना अनिवार्य किया गया है।
इसी तरह उत्तराखंड में भी कक्षा दसवीं वहीं के बोर्ड से उत्तीर्ण करने की शर्त लगाई है।
कांग्रेस बीजेपी में एक दूसरे पर वार
मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा है कि हमारे द्वारा प्रदेश के युवाओं को नौकरी मिले, इसके लिए कई प्रावधान किए।
सरकार बनते ही उदयोग नीति में परिवर्तन कर प्रदेश के 70 प्रतिशत युवाओं को रोजगार देना अनिवार्य किया।
युवाओं के लिए युवा स्वाभिमान योजना चलाकर युवाओं को रोजगार देने का प्रयास किया।
कमलनाथ ने शिवराज सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि 15 साल में प्रदेश में बेरोजगारी की क्या स्थिति रहीं, वो किसी से छिपी नहीं।
युवा हाथ में डिग्री लेकर भटकते रहे। मजदूरी और गरीबी के आंकडे इस बात की तस्दीक करते रहे।
यवाओं को नौकरी देने की घोषणा पूर्व में की गई हजारों घोषणा की तरह केवल घोषण बन कर नहीं रह जाये।
इधर सरकार में नगरीय विकास मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि हम प्रदेश में रोजगार देने वाली सरकार ला रहे है।
ढोर चराने, बैंड बजाने जैसे रोजगार देकर युवाओं को लज्जित करने का काम हमारे द्वारा नहीं किया गया।
सोशल मीडिया पर क्या कहते है युवा
- टिविटर पर अनुज तिवारी लिखते है कि शिवराज सरकार ने एमपीपीएससी की सुनवाई को एक माह के लिए टाल दिया है।
- वहीं अनुराग श्रीवास्तव लिखते है कि दो साल से डिस्टिक्ट फेसिलिएटर्स की नियुक्ति 2 साल से नहीं हुई है।
- मोहन मोहरे का कहना है कि इस तरह के कानून लाने के लिए धन्यवाद।
- अरविंद केजरीवाल प्रशंसक ने लिखा है कि जब दिली सरकार ने कहा था कि केवल दिल्ली के लोगों का ईलाज करेंगे, तब ये लोग इसका विरोध कर रहे थे। अब कह रहे है कि मप्र के युवा को नौकरी देंगे।
- मप्र शिक्षक भर्ती 2018 के टिविटर हैंडल से कहा गया है कि ऐसे अधिकार का क्या अचार डालेंगे। जब से आप आए हो शिक्षक भर्ती रोककर बैठे हो।
- प्रदीप गुप्ता का कहना है कि मामा आने युवाओं को एक बहुत अच्छा उपहार दिया है। अब प्रदेश के बच्चों को नौकरी मिल सकेगी।
- केशव वाजपेयी लिखते है कि देश का हर बच्चा बराबर है। विविधता में एकता का नारा देने का अर्थ क्या है? ये फैसला निंदनीय है। हम देश को नहीं बंटने देंगे।
म प के निवासी को म प में ही नॉकरी दी जाये