अंतिम वर्ष की परीक्षाएं होगी या नहीं, सप्रीम कोर्ट में सुनवाई 14 अगस्त को
परीक्षाएं कराने पर अडा यूजीसी छात्रों की जान जोखिम में
दो करोड से ज्यादा छात्रों को भविष्य अधर में केस सुप्रीम कोर्ट में
क्या तीन घंटे में तय होगा कोन गधा कोन घोडा
भोपाल। देश में करीब ढाई करोड से अधिक छात्र और छात्राओं की रातों की नींद उडी हुई है। वह इस कंन्फयूजन में है कि फाइनल इयर के एक्जाम होंगे या नहीं।
एक्जाम नहीं हुए तो डिग्री मिलेगी या नहीं। डिग्री नहीं मिली तो आगे जाकर नौकरी मिलेगी या नहीं। परीक्षा की तैयारी करे या नहीं।
ऐसे तमाम सवाल छात्रों के मन में उमड रहे है। एक तरफ तो देश में कोरोना पॉजीटिव की संख्या 20 लाख पार हो चुकी है।
इसके बाद भी विश्व विदयालय अनुदान आयोग यूजीसी परीक्षा कराने पर आमादा है। शुक्रवार 14 अगस्त को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।
कोर्ट ये ही तय करेगा कि कोरोना काल में अंतिम वर्ष की परीक्षाएं होगी या नहीं।
अंतिम वर्ष की परीक्षाएं कराने पर सरकार और यूजीसी एक राय
गौरतलब है कि केंद्र सरकार और यूजीसी के हलफानामें से जाहिर हे कि यूनिवर्सिटी की अंतिम वर्ष की परीक्षाएं होगी।
रदद होने के चांस कम है। हालांकि यह कोर्ट को तय करना है। लेकिन सराकर और यूजीसी परीक्षाएं कराने को लेकर किसी भी हद तक जाने को तैयार है।
सरकार ने छात्रों के “शैक्षणिक हित” को ध्यान में रखते हुए 6 जुलाई, 2020 को अधिसूचना जारी कर विश्वविद्यालयों और संस्थानों द्वारा परीक्षा आयोजित करने की अनुमति जारी कर चुका है।
दूसरी तरफ UGC ने हलफनामा देकर कहा है कि वह देश भर के विश्वविद्यालयों में अंतिम वर्ष की परीक्षा रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं का विरोध करती है।
अंतिम वर्ष की परीक्षाएं कराने के विरोध में कई राज्य राज्य
प्राप्त जानकारी के अनुसार दिल्ली सरकार और महाराष्ट सरकार ने अपने राज्य में यूनिवर्सिटी की अंतिम वर्ष की परीक्षाएं रदद करने का फैसला लिया है।
यूजीसी के निर्णय का खुलकर विरोध भी कर रही है। यूजीसी ने कहा है कि वह सितंबर के अंत में परीक्षाएं कराने के हक में है।
यूजीसी का यह भी कहना है कि परीक्षा के बिना डिग्री नहीं दी जा सकती है।
इस फार्मूले पर क्यों तैयार नहीं यूजीसी
देश के कई शिक्षाविदों का कहना है कि तकनीकी विषय की परीक्षा हो या अन्य विषयों की परीक्षा की।
जब छात्रों ने चार साल में सात सेमेस्टर की परीक्षाएं दी है तो मूल्यांकन कर उत्तीर्ण कर दिया जाये। जब उस सेमेस्टर में पढाया ही नहीं तो परीक्षाएं क्यों ली जा रही है।
इस मामले में यूजीसी को निर्णय लेना चाहिये। शुरू में सीबीएसई भी 12 वीं की परीक्षाएं कराने पर अडी थी।
लेकिन जब कोरोना के मरीज दिल्ली में बढने लगे तो छात्रों के हक में निर्णय लिया।
सरकार समर्थित शिक्षाविदों का कहना है सदमें रहेगा छात्र
इधर सरकार समर्थित शिक्षाविदों का मानना है कि परीक्षाएं नही होने से सभी को उत्तीर्ण कर देने से छात्र जीवन सदमें में रहेगा।
अगली कक्षा में जाने वाली परीक्षा में उत्तीर्ण कर सकते है लेकिन जिसका अंतिम वर्ष है उसे औसत मार्कस नहीं दे सकते है।
कैसे कराएंगे अंतिम वर्ष की परीक्षाएं
ये भी देखना होगा कि जब देश के कई हिस्सों में बाढ आई हुई है। विधुत की समस्या बनी हुई है छात्रों को स्टडी मेटेरियल नहीं मिला है तब भी परीक्षाएं कराना क्या सही होगा।
इधर यूजीसी के पूर्व डायरेक्टर वेदप्रकाश का कहना है कि परीक्षा कराना और डिग्री देने का निर्णय यूनिवर्सिटी ले सकती है।
यूजीसी एक्ट में इसका प्रावधान है। बेवजह भ्रम की स्थिति बनाई जा रही है।
बीएचयू नीट की परीक्षा देने वाले तैयारी करते रहे
बीएचयू नीट जेईई क्लैट की परीक्षाएं देने वाले भी तैयारी करते रहे। इस आशा में नहीं रहे कि परीक्षा नहीं होगी।
परीक्षा केंद्र पर जाएं तो आपस में ही ख्याल रखें। एक दूसरे से दूर रहें। थोड़ा पहले पहुंचे। मास्क पहनें।
छात्रों की सेहत से खिलवाड नहीं होगा
परीक्षाएं कराने पर करोडों छात्र टीचर एजुकेशन स्टॉफ और उनके परिजनों की सेहत खतरे में रहेगी।
कोन छात्र कहां से आ रहा है क्या उसमें कोरोना के लक्षण है। इसको कोन देखेगा।
एक झटके में 20 लाख पाजीटिव से 1 करोड पॉजीटिव होने में समय नहीं लगेगा।
क्या कहता है सर्वे
एक सर्वे सामने आया है। करीब 25 हजार लोगों अभिभावकों से राय ली गई है।
58 प्रतिशत अभिभावक स्कूल खोलने के पक्ष में नहीं है। 33 प्रतिशत का कहना है कि हां खोल सकते है। वहीं 9 प्रतिशत अभिभावकों ने अपना मन नहीं बनाया।
वहीं अमेरिका से एक बूरी खबर आई है। अमेरिका में स्कूल खोलने पर 16 से 30 जुलाई के बीच जांच कराए जाने पर 97 हजार बच्चे कोरोना पॉजीटिव पाए गए है।
यूएस सरकार ने स्कूल खोलने का प्रस्ताव वापस लिया है। भारत में भी सितंबा ये स्कूल खोलने पर चचर्स चल रही है। सरकार को बच्चों का ध्यान रखना होगा।