इंटरनेट की दुनिया में तीसरी भाषा की चुनौती… टिके रहने के लिये तीसरी भाषा सीखना जरूरी
राहुल चौकसे
भोपाल. दुनिया कोरोना वायरस द्वारा फैलाई गयी महामारी से अब भी जूझ रही है। हर तरफ ज़िंदगी भौतिक रुप से जहां एक ओर दायरे में सिमट गई तो दूसरी ओर ‘न्यू नॉर्मल’ को आत्मसात किया जा रहा है। इस न्यू नॉर्मल में रोजमर्रा की ज़िंदगी को सुगम बनाने में सबसे बड़ा योगदान है तकनीक का और इंटरनेट की दुनिया का। लॉकडाउन के दौरान चार दीवारी में बंद जनता का संवाद निर्बाध रुप से जारी रखने में तकनीक विशेष सहायक बनी। सुलभ हो चुके दूसरे संसार कहे जाने वाले इंटरनेट ने सूचनाओं का आदान-प्रदान जारी रखा। इंटरनेट की दुनिया में प्रवेश का प्रभावी माध्यम रहे स्मार्टफोन। पर जरा सोचिए कि स्मार्टफोन की तकनीकी भाषा इतनी सहज है कि इसका इस्तेमाल सरलता से किया जा सकता है?
कैसी है इंटरनेट की दुनिया
आदिकाल से संवाद निरंतर उन्नत होने वाली प्रक्रिया रही है। संवाद से ही इतिहास को सहेजना आसान हो सका है। आदिमानव द्वारा बनाये गये भित्तिचित्र से लेकर वर्तमान काल में स्मार्टफोन पर देखे जाने वाले सिनेमा अथवा वेबसीरिज़ के रुप में चलचित्र संवाद के ही वाहक हैं। तार या चिट्ठी भेजकर दिया जाने वाले संदेश अब गुजरे जमाने की बात हो चली है। ई-मेल, मैसेंजर, चैट एप्लीकेशन्स के जरिये विश्व के किसी भी कोने में संवाद करना बहुत ही आसान हो गया है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर व्यक्ति आभासी रुप से मौजूद है। उठने से लेकर सोने तक की उसके जीवन से जुड़ी हर जानकारी वह एक क्षण में हजारों-लाखों से साझा कर रहा है। विभिन्न मुद्दों पर सलाह- मशविरा कर रहा है। अपनी राय देने के साथ कायम भी कर रहा है। वह खरीदारी भी इंटरनेट पर सजी उन दुकानों से कर रहा है, जिसके विज्ञापन भी उसे वहीं देखने मिल रहे हैं। वह मैप्स वाली एप्लीकेशन से रास्ते पूछ रहा है। न्यू नॉर्मल में दफ्तर का काम ‘वर्क फ्रॉम होम’ सुविधा के साथ कर रहा है। विद्यार्थी ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। समस्त सेवाओं के लिए भुगतान ऑनलाइन ले और दे रहा है। किसी भी प्रकार की शिकायत और सुझाव ऑनलाइन दे रहा है। सरकारें इंटरनेट के मार्फत अपनी सेवाएं आमजन तक पहुंचाने के लिए नित नवाचार कर रहीं हैं। इस आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि भौतिकवादी दुनिया के समानांतर इंटरनेट तकनीक की धुरी पर एक डिजीटल दुनिया पूर्ण रुप से तैयार हो चुकी है। निरंतर उन्नत होती इस दुनिया में हर व्यक्ति को अपने डिजिटल अवतार में उपस्थित होना अनिवार्य हो गया है। उपस्थित रहकर संवाद करना अहम हो गया है। किंतु इस दूसरी दुनिया कही जाने वाली डिजीटल दुनिया में तकनीक शब्दकोष वाली भाषा को समझना एक गंभीर चुनौती बनकर उभर रही है। डिजीटल दुनिया में संवाद की प्रक्रिया एक नया आयाम तय कर रही है।
आखिर इंटरनेट की दुनिया में तीसरी भाषा चुनौती क्यों
हम संवाद के लिए सर्वप्रथम अपनी मातृभाषा को प्राथमिकता देते हैं। हमारे देश में क्षेत्रीय भाषाओं के साथ स्थानीय बोलियों का भी चलन है। शिक्षा ग्रहण करने के दौरान हमारा वास्ता वैश्विक कही जाने वाली अंग्रेजी भाषा से पड़ता है। अमूमन इस प्रकार हमारी प्रथम भाषा मातृभाषा व दूसरे पायदान पर अंग्रेजी होती है। चूंकि इंटरनेट का प्रार्दुभाव व विकास अंग्रेजी भाषा में ही हुआ है तो जटिल तकनीकी शब्दों से भरा इसका शब्दकोश भी अंग्रेजी में है। डिजिटल दुनिया में भाषाई समस्या का मूल यहीं छिपा हुआ है। इंटरनेट जगत की तकनीकी भाषा उस अंग्रेजी भाषा से न्यूनतम अथवा नगण्य मेल खाती है जो हम हमारे बचपन से सीखते आ रहे हैं। वैसे भी अंग्रेजी भाषा को संस्कृत की अपेक्षा में अवैज्ञानिक व त्रुटिपूर्ण कहा जाता है। ऐसे में अंग्रेजी भाषा का आधार लिए हुए डिजीटल संसार की तकनीकी भाषा को समझना एक आम उपयोगकर्ता के लिए एक चुनौती ही है।
इंटरनेट की दुनिया में टिके रहने के लिये तीसरी भाषा सीखना जरूरी
डिजीटल दुनिया में मौजूदगी व कुशल संवाद संप्रेषण के लिए तीसरी भाषा की समझ होना नितांत आवश्यक हो गया है। समाचारों में सायबर अपराध बढ़ते जा रहे हैं। यह जानना बेहद ही मुश्किल है कि सायबर अपराधियों के निशाने पर आप हैं। सायबर अपराधियों का पकड़े जाने तक कोई चेहरा नहीं होता है। सायबर अपराधी आपकी इस तीसरी भाषा की अज्ञानता का फायदा उठाकर आपको अपना शिकार बनाते हैं। फिशिंग लिंक्स भेजकर आपकी मेहनत की कमाई बैंक खाते से साफ करने के साथ आपके नाम से धोखाधड़ी कर सकते हैं। जांच एजेंसियों को इन अपराधों को सुलझाने में खासी मशक्कत करनी पड़ती है। सायबर अपराध दर्ज करने से लेकर सुलझाने की प्रक्रिया भी जटिल है। इसका एक कारण यह भी है कि पीड़ित अपने साथ हुए सायबर अपराध को शिकायत के रुप में अच्छे से नहीं समझा पाता है।
डिजीटल साक्षर होने से खुलेंगे संभावनाओं के द्वार
इस तीसरी भाषा के महत्व को पत्रकारिता व संचार की दृष्टि से एशिया के पहले पत्रकारिता व संचार विश्वविद्यालय माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने समझा। विवि के पत्रकारिता विभाग ने डिजीटल पत्रकारिता का एक स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम शुरु किया। इस पाठ्यक्रम के निर्माण व शिक्षण के दौरान इस तीसरी भाषा के महत्व को मैंने महसूस किया। देशभर से चयनित विद्यार्थियों को पढ़ाने व सिखाने के दौरान इस तीसरी भाषा की शब्दावली का उनसे स्नातक की पढ़ाई तक वास्ता नहीं होना एक प्रमुख कारण होना पाया। यही स्थिति अधिकतर पाठ्यक्रमों के विद्यार्थियों के मध्य भी देखने मिली। जबकि रोजगार अथवा स्वरोजगार के अवसर में इस तीसरी भाषा की भूमिका महत्वपूर्ण हो चुकी है। चुनौती इस जटिल तकनीकी तीसरी भाषा को सरलीकृत रुप में सिखाने की भी है। यहां सिखाने के लिए सरलीकरण का तात्पर्य मातृभाषा में समझाने से है। इसके लिए दक्ष प्रशिक्षकों की भी आवश्यकता है जिनकी कमी नज़र आती है। इस तीसरी भाषा के लोक शिक्षण की पुरजोर आवश्यकता है। इसके लिए डेस्कटॉप अथवा लैपटॉप के जरिए सिखाने की खानापूर्ति करने से बचना होगा। जनसुलभ हो चुके स्मार्टफोन को आधार बनाना होगा। आंकड़ें बताते हैं कि स्मार्टफोन से इंटरनेट का इस्तेमाल बीते सालों में तेजी से बढ़ा है। 5जी हो चुकी तकनीक के जमाने में डिजीटल निरक्षरता को दूर करना ही होगा। डिजीटल साक्षर होने से संभावनाओं का आसमान आपका होगा और अवसरों के अश्वों पर सवार होकर एक नई इबारत रच सकेंगे।
(लेखक डिजीटल प्रशिक्षक, मोबाइल जर्नलिज़्म एक्सपर्ट व विंग्स एंड रिंग्स मीडिया के फाउंडर व एमडी हैं। )