मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरी का दो वर्षों से इंतजार
भोपाल। मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरी का इंतजार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। नेताओ के वादे और घोषणाओं से प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे छात्र अब उब गए है।
उनको किसी नेता की बात का भरोसा नहीं रह गया है। नेताओं का मानन है कि अब केवल नौकरी की भर्ती आने वाली खबर चला दो, वोट मिल जायेंगे।
डेढ साल पहले जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी थी, तब युवाओं को भरोसा था कि अब सरकारी नौकरी आयेगी।
लेकिन मप्र की कमलनाथ सरकार द्वारा पीईबी का नाम बदलने में इतना समय लगा दिया कि उनकी सरकार ही चली गई। कांग्रेस का कहना था कि व्यापंम भर्ती देश और प्रदेश पर कलंक है।
तत्कालीन भाजपा सरकार ने व्यापंम की बदनामी से पीछा छुडाने के लिए इसका नया नामकरण प्रोफेशनल एक्जामिनेशन बोर्ड पीईबी कर दिया।।
कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को युवाओं द्वारा ज्ञापन सौंपकर भर्ती जल्द प्रारंभ करने का निवेदन किया। लेकिन एक ही जवाब दिया गया कि पहले पीईबी का नाम बदलना जायेगा, तब भर्ती शुरू की जायेगी।
इधर भारतीय जनता पार्टी से भी युवा खुश नहीं है। उनको भी सरकार में अए हुए तीन माह से अधिक का समय गुजर चुका है, लेकिन भाजपा सरकार भी भर्ती की निश्चित तिथि नहीं बता रही है।
मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरी 2020–
मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरी २०२० में आने की उम्मीद कम ही लग रही है। कोविड-19 के दस लाख से अधिक नए मरीज मिलने के कारण कई परीक्षाओं की तिथि पीईबी ने बढा दी है।
वैसे राजनेता अपनी सदस्यता अभियान, सभाएं बराबर कर रहे है। सबसे बडी बात तो यह है कि आम लोगों और छात्रों को कोरोना में सोशल डिस्टेसिंग का पालन करने के लिए कहा जा रहा है, लेकिन नेताओं को इससे छुट है।
छात्र ये दोहरा पन भी देख रहे हैं। इसके अलावा छात्र भी परीक्षा की आवाज नहीं उठा रहे है।
पंद्रह महिने वेस पंद्रह साल-
छात्रों में डिबेट हो रही है कि पंद्रह महिने की कांग्रेस सरकार द्वारा कोई नई परीक्षा आयोजित नहीं कराई। इसके लिए कांग्रेस पूरी तरह से जिम्मेंदार है।
वैसे कांग्रेस के समय छात्रों की सीट बैचकर किसी पैसे वाले अमीरजादे को नहीं दी गई है। ये बात भी छात्रों को ध्यान रखना चाहिये। इसी तरह भाजपा को मुददे पकडने में महारत है।
आने वाले समय में उपचुनाव है। इसके बाद भी सरकार मप्र में सरकारी भर्ती नहीं ला रही है। चुनिंदा ही सही लेकिन राज्य सरकार को नई सरकारी भर्ती अनाउंस करना चाहिये।
आखरी भर्ती 3 अगस्त 2018 को-
बेरोजगार युवक युवतियों का जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, उनको प्रतियोगिता परीक्षा का इंतजार है।
आखरी भर्ती मुख्यमंत्री शिवराज सिहं चौहान के कार्यकाल में अंतिम समय में 3 अगस्त 2018 को जेल विभाग में जेल प्रहरी एवं अन्य पदों के लिए जारी की गई थी।
तब से लेकर अब तक दसवीं से लेकर पीएचडी किए छात्र प्रतियोगी परीक्षा की प्रतीक्षा में दिन काट रहे है।
रिजर्वेशन का लेकर दांव-
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अन्य पिछडा वर्ग को साधने के लिए पीएससी में 14 प्रतिशत के बजाय 27 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग की है। कमलनाथ का कहना है कि प्रदेश में ओबीसी की जनसंख्या 53 प्रतिशत है।
इस लिहाज से इतनी बडी जनसंख्या को प्रतिनिधित्व देने के लिए मप्र लोक सेवा अधिनियम में संशोधन किया गया था। इस विषय पर न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गई है।
संविधान के किसी भी अनुच्छेद में आरक्षण की अधिकतम सीमा का निर्धारण नहीं है। कमलनाथ ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से न्यायालय में पिछडा वर्ग का पक्ष मजबूती से रखने की मांग की है।
मप्र में भर्ती परीक्षाओं में लागू आरक्षण की तथ्यात्मक जानकारी-
मप्र में सभी भर्तियों में पद तालिका में आरक्षण अधिनियम 1994 लागू है। जो मप्र में के विभाजन के पूर्व में बना था।
इस अधिनियम को वर्ष 2000 में हुए मप्र के विभाजन के समय बदला जाना चाहिये था, जो कि तत्कालीन सराकरों द्वारा नहीं किया गया।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों के बैंच ने इंद्रा साहनी केस के संबंध में पुन: रिवाईज आर्डर जारी किया है कि 50 प्रतिशत के जातिगत आरक्षण की सीमा को कभी भी लांघा नहीं जा सकता है।
जब नौकरी ही नहीं तो क्या काम का आरक्षण-
धीरे धीरे सरकारों ने चाहे केंद्र की हो या राज्य की। सभी सरकारों ने सरकारी नौकरियों पर रोक लगाकर रख दी है। सबसे ज्यादा सेंटल की भर्ती आती थी, वो भी मोदी राज में लगभग खत्म हो गई है।
हालत यह है कि आर्डर निकालकर रेलवे में नई भर्ती पर रोक लगा दिया। हैरत की बात तो यह है कि देश और राज्य के जो छात्र दिन रात सोशल मीडिया पर नौकरी की मांग करते है.
उनमें से किसी ने मोदी को टिविट करके नहीं पूछा कि 2 करोड् रोजगार देने का वादा तो आपके द्वारा ही किया गया था।
इस वादे को पूरा क्यों नहीं किया जा रहा है। छात्रों को अपने मुददे खुद ही उठाने होंगे।