Engineering colleges in mp- एमपी से इंजीनियरिंग करना सबसे बड़ी भूल
-5 साल में पचास से ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हुए, शिक्षा की गुणवत्ता से सरकार बेखबर
भोपाल. मध्यप्रदेश के इंजीरियरिंग कॉलेजों से इंजीनियरिंग करना किसी अभिशाप से कम नहीं है. एक तो इन इंजीनियरिंग कॉलेज (Engineering colleges in mp) में लाखों रूपये की फीस जमा करो. जब पढ़ाई की बात आए तो ऐसे गेस्ट टीचरों से पढ़ाई कराई जा रही है, जो खुद पढ़ रहे है.
इसका असर ये होता है कि जब कोई कंपनी प्लेसमेंट के लिए मध्यप्रदेश आती है, तो उसको स्किल वाले बंदे नहीं मिल पाते है. वैसे तो कंपनियां मप्र आना पसंद नहीं करती है, फिर भी आ जाये, तो कॉलेज की हालत देखकर प्लेसमेंट कराने को तैयारी नहीं होती.
समझो प्लेसमेंट के लिए तैयार हो भी जाये, तो यहां के छात्र उनके बेसिक सवालों के जवाब तक नहीं दे पाते है. कम्यूनिकेशन स्किल्स की बात तो छोड़ दे. सिलेबस से संबंधित सवालों के जवाब तक नहीं दे पाते है.
वैसे ये छात्रों की कमी नहीं है. ये कमी है सरकारों की. जिन्होंने धड़ल्ले से इंजीनियरिंग कॉलेजों को खोलने की अनुमति तो दी, लेकिन कभी ये नहीं देखा कि उनके पास इंफ्रास्ट्रक्चर है या नहीं.
हैरत तो इस बात पर है कि एआईसीटीई की टीम जो इंजीनियरिंग कॉलेजों में आकर उनके यहां शिक्षा और अधोसंरचना की गुणवत्ता की जांच करती है, तब इंजीनियरिंग कॉलेज को अप्रूव करती है, वो करती क्या है.
क्या ये जांच का विषय नहीं है कि बीते पंद्रह साल में कितने कॉलेजों को परमीशन दी गई, क्या उनके पास उस समय इंफ्रास्ट्रक्चर था…आपको जानकर हैरत होगी कि बीते पांच सालों में प्रदेश के 50 से ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेजों पर ताले लग चुके है. लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है…
Engineering colleges in mp- 40 हजार से ज्यादा सीटें खाली
प्रदेश में 151 इंजीरियरिंग कॉलेज है, और उनमें 72 हजार सीटें है. इस वर्ष कॉलेज लेवल काउंसलिंग (सीएलसी) के कई राउंड के बाद भी 3़1 हजार सीटें ही भर पाई है. 40 हजार से अधिक इंजीनियरिंग की सीटें खाली पड़ी हुई है.
गौरतलब है कि वर्ष 2013 में इंजीरियरिंग कॉलेजों में प्रवेश के लिए प्री इंजीनियरिंग टेस्ट होता था. उस समय प्रदेश में करीब 200 कॉलेज थे, और उनमें लगभग 75 हजार सीटें होती थी. जिसमें से आसानी से 72 हजार सीटों पर प्रवेश हो जाते थे…
Engineering colleges in mp- इसलिए बिगड़ी प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों की साख
मध्यप्रदेश में बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग कॉलेज खुल तो गए, लेकिन उनमें शिक्षा की गुणवत्ता बेहद खराब है.कंपनियों का रूझान प्रदेश के बच्चों को नौकरी देने का नहीं है.
कॉलेजों में शिक्षकों की कमी है. जो शिक्षक पढ़ाते है, उनमें भी स्किल्स की कमी है. 15 से 20 हजार रूपए की सैलरी वाले शिक्षकों से गुणवत्ता की बात करना बेमानी होगा. इंजीनियरिंग कॉलेज कमाई के अडडे बनते जा रहे है.
आरजीपीवी की भूमिका पर भी सवाल
प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों को को संचालित करने के लिए एकमात्र राजीव गांधी प्रौद्यौगिकी विश्वविदयालय (आरजीपीवी) है. आरजीपीवी भी शिक्षा की गुणवत्ता पर उतना फोकस नहीं कर रही है, जितना उसे करना चाहिये.
आरजीपीवी को और अधिक सक्रिय होने की आवश्यकता है. आरजीपीवी कॉलेजों को मान्यता तो दे देती है, लेकिन कॉलेजों की शिक्षा की गुणवत्ता को नहीं जांचती है.
इंडस्ट्रीज और कॉलेज के बीच कोई समझौता नहीं
प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़ने वाले बच्चों को इंडस्ट्रीज में प्रापर ट्रेनिंग नहीं मिल पाती है. इसकी वजह है कॉलेज संचालक और इंडस्ट्रीज के बीच कोई समझौता नहीं है.
इसलिए बच्चों को प्रेक्टीकल नॉलेज नहीं मिल पाता है. इस कारण से यहां के छात्र अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़ जाते है, और उनको नौकरी नहीं मिलती है.
इंजीनियरिंग के अलावा दूसरे कोर्सेस में प्रवेश अधिक
पूर्व में प्रदेश में इंजीनियरिंग की लहर थी, हर कोई अपने बच्चों को इंजीनियरिंग कराना चाहता था, लेकिन अब माता पिता जागरूक हो गए है. वह अपने बच्चों को इंजीनियरिंग के प्रवेश दिलाने के बजाय कॉमर्स, साइंस, आर्ट, फार्मेसी, लॉ विषयों में प्रवेश करा रहे है.
सीए और सीएस के प्रति छात्रों का रूझान बढ़ा है. इसलिए भी इंजीनियरिंग कॉलेजों में पहले की तुलना में प्रवेश कम हुआ है. वहीं टॉप इंजीनियरिंग कॉलेजों को छोड़कर दूसरे कॉलेजों में पढ़ रहे छात्रों को नौकरी मिलने के चांस बहुत कम होते है, ऐसे में भेड़ चाल के बजाय रूचि का विषय पढ़ रहे है.
प्रदेश के बाहर के इंजीनियरिंग कॉलेजों की और रूझान
प्रदेश के हजारों बच्चे राज्य के इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश लेने के बजाय दूसरे राज्यों के कॉलेजों का रूख कर कर रहे है.
इस कारण से प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश करने वाले छात्रों की संख्या में निरंतर गिरावट हो रही है. केवल आईटी और कंप्यूटर साइंस ब्रांच में कॉलेजों को प्रवेश मिल पा रहे है…