MPPSC PRE RESULT 2019-20 में हेमराज प्रकरण को बनाया आधार, सभी याचिकाएं जबलपुर स्थानांतरित के आदेश
Online desk भोपाल/इंदौर
दिसंबर माह में जारी हुए एमपीपीएससी प्री रिजल्ट (MPPSC PRE RESULT 2019-20) को लेकर हाईकोर्ट इंदौर खंडपीठ में सुनवाई हुई. पीएससी परीक्षा 2019 की प्रारंभिक परीक्षा परिणाम सहित राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 में किए गए संशोधन दिनांक 17/2/20 की संवैधानिकता को चुनोती देने वाली याचिका क्रमांक 2891/21 की प्रारंभिक सुनवाई करते हुए माननीय मुख्य न्यायमूर्ति मो. रफीक एवं संजय द्विवेदी की युगल पीठ के समक्ष, फिजिकल हियरिंग में अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं विनायक शाह ने कोर्ट को बताया कि अभी तक पीएससी के समस्त 5 प्रकरणों में सुनवाई 22 फरवरी 21 नियत की गई है, लेकिन आज दिनांक तक किसी भी प्रकरण में राज्य शासन एवं पीएससी ने जबाब दाखिल नही किया गया है।
क्योंकि उक्त याचिकाओं में उठाये गए मुद्दों पर सरकार एवं पीएससी के पास कोई जबाब नही है. PSC द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के विरूद्ध है , तथा 113% आरक्षण लागू करना संविधान के प्रावधानों के तहत संभव ही नही है । अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ने कोर्ट को बताया कि शासन एवं पीएससी का केवल एक ही तर्क है कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा हेमराज राणा के प्रकरण में पारित निर्णय के अनुक्रम में नियमों में परिवर्तन किया गया है, जिसमे आरक्षण का लाभ अंतिम चयन में दिए जाने का प्रावधान किया गया है, शासन के उक्त तर्क को कटाक्ष करते हुए पिटीशनर के अधिवक्ताओं ने कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट द्वारा आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4 की उप धारा 4 का गलत अर्थनावयन (इंटरपिटेशन) किया गया है. जो संविधान के अनुच्छेद 14, 15, एवं 16 के विपरीत है, तथा आरक्षण अधिनियम 1994, की मूल भावना से भी असंगत है.
कोर्ट को यह भी बताया गया कि इंदौर में विचाराधीन याचिकाओं में पीएससी ने जबाब दाखिल कर दिया है, जिसमे PSC ने सिर्फ हाई कोर्ट की डिविजन बैंच द्वारा 2006 में पारित हेमराज राणा के निर्णय का अनुकरण करते हुए आरक्षण अंतिम चयन में दिए जाने की बात कही गई है, तब अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ने कोर्ट में कहा कि यह प्रकरण आरक्षण से संबंधित है ही नही. इस प्रकरण में अनारक्षित सीट में किए गए अवैधानिक चयन प्रक्रिया से संबंधित है. क्योंकि अनारक्षित/सामान्य सीटों पर आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थीयों का चयन किए जाने का सामान्य नियम है, लेकिन पीएससी ने उक्त सीटों पर सिर्फ सामान्य/फारवर्ड क्लास के ही अभ्यर्थीयों का ही चयनित किया है।
तथा प्रारंभिक परीक्षा में एक पद के विरूद्ध 15 गुना अभ्यर्थीयों को चयनित करने का नियम है, लेकिन पीएससी ने अनारक्षित वर्ग को 26 गुना से ज्यादा चयनित किया गया है. वहीं अनारक्षित वर्ग में 27% के स्थान पर 40% पद आरक्षित किए गए है, जिससे आरक्षण की कुल सीमा 113% हो गई है । पिटीशनर अधिवक्ताओं ने कोर्ट को यह भी बताया कि राज्य शासन एवं पीएससी ने सम्पूर्ण कार्यवाही अनारक्षित वर्गों को लाभ से वंचित करने के दुराशय पूर्ण उद्देश्य से अवैधानिक कार्यवाही की गई है. जिससे आरक्षित वर्ग के लगभग 45 हजार प्रतिभावान बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ की गई है ।
पिटीशनर अधिवक्ताओं के सम्पूर्ण तर्कों को गंभीरता से सुनते हुए मुख्य न्याय मूर्ति ने पीएससी परीक्षा 2019 को निर्णय के अधीन रखने का अहम आदेश पारित किया गया. 22 फरवरी के पूर्व इंदौर एवं ग्वालियर खंडपीठ में पीएससी परीक्षा 2019 की वैधानिकता को चुनोती देने वाली समस्त याचिकाओं को मुख्य पीठ जबलपुर स्थांतरित करने का आदेश दिया गया । कोर्ट ने अंत मे कहा कि यदि हेमराज राणा के प्रकरण में पारित आदेश आरक्षण अधिनियम 1994 से असंगत होगा तो प्रकरण संवैधानिक पीठ का गठन कर त्रुटि सुधार की जाएगी तथा राज्य शासन एवं पीएससी को आवश्यक रूप से उक्त याचिका में 3 दिवस में जबाब दाखिल करने का आदेश दिया गया । 22 फरवरी को पीएससी परीक्षा 2019 की वैधानिकता से संबंधित समस्त याचिकाओं की सुनवाई मुख्य पीठ जबलपुर में चीफजस्टिस की अध्यक्षता वाली युगल पीठद्वारा की जाएगी ।