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लेटरल एंट्री और सरकारी उपक्रम को बेचने से भविष्‍य में सरकारी नौकरी पर खतरा….

लेटरल एंट्री और सरकारी उपक्रम को बेचने से भविष्‍य में सरकारी नौकरी पर खतरा….

-सरकार के कई निर्णयों से आरक्षण के हिमायती लोग परेशान, सरकार पर आरक्षण खत्‍म करने की साजिश का लगा रहे आरोप. पत्रकार दिलीप मंडल और पूर्व सांसद आईआरएस उदित राज चला रहे सरकार के खिलाफ मुहिम

Online desk, bhopal

क्‍या देश से आरक्षण खत्‍म करने की तैयारियां हो चुकी है?, क्‍या समीक्षा के नाम पर आरक्षण खत्‍म करने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है?, तो इसका जवाब है हां. इसकी तैयारी कई साल से चल रही है. दरअसल जब से सरकारी नौकरियों में कमी की गई है, तब से सीधे तौर पर आरक्षण खत्‍म करने के प्रयासों को बढ़ावा ही मिला है. हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी सार्वजनिक रूप से आरक्षण के हिमायती रहे है, और उन्‍होंने कहा भी है कि देश में आरक्षण रहेगा. लेकिन देश में आरक्षण के हिमायती एक्‍टीविस्‍ट पीएम के बयान से इतफाक नहीं रखते है. उनका कहना है कि जिस तरह से कांग्रेस की सरकार गांधी परिवार चलाता है, उसी तरह भाजपा की सरकार संघ परिवार चलाता है. संघ प्रमुख मोहन भागवत  पूर्व में बिहार चुनाव के समय आरक्षण की समीक्षा करने की बात कह चुके है. उनके बयान के बाद बिहार से भाजपा साफ हो गई थी, तब प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी और पूरी भाजपा की कोर टीम ने संघ प्रमुख के बयान को गलत तरीके से बताने की बात कहीं थी,.वैसे वर्तमान में सरकार के दो निर्णय आपको समझने के लिये काफी है, कि सरकार आरक्षण के संबंध में क्‍या सोचती है, क्‍या रवैया रखती है, और उसे बरकरार रखने में कितनी संजीदा है…क्‍या इससे सरकारी नौकरी खत्‍म नहीं होगी?

सरकारी उपक्रम बेचकर लेटरल इंट्री से पदों को भरे जाने का सच-

संघ लोक सेवा आयोग ने संयुक्‍त सचिव और निदेशक के पदों पर लेटरल एंट्री के जरिये भर्ती की अधिसूचना जारी की है. यह भर्ती कुल 30 पदों पर होने जा रही है. इस भर्ती के लिए सिर्फ अनारक्षित वर्ग के उम्‍मीदवार ही आवेदन के पात्र है. एससी/एसटी/ओबीसी के कैंडिडेटस आवेदन नहीं कर सकते है. इस लेटरल एंट्री के माध्‍यम से प्राइवेट सेक्‍टर के प्रोफेशनल्‍स को विभिन्‍न मंत्रालयों में सीधे संयुक्त‍त सचिव के स्‍तर के पदों पर नियुक्‍त किया जाएगा. तीन साल के अनुबंध को 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है. इसके लिये आवेदकों को कोई परीक्षा नहीं देना होगा, उम्‍मीदवारों का चयन इंटरव्‍यू के आधार पर होगा. इसके लिये कोई लिखित परीक्षा भी नहीं होगी. वैसे कोई भी व्‍यक्ति सीधे संयुक्‍त सचिव नहीं बनता है. यूपीएससी क्‍लीयर करने के बाद सहायक कलेक्‍टर से लेकर पीएस बनने के बाद भी संयुक्‍त सचिव नहीं बन पाता है. एक आईएएस को संयुक्‍त सचिव बनने के लिये 20 साल की नौकरी करना पड़ता है.

23 सरकारी उपक्रम को बेचने से हजारों कर्मचारी होंगे बेरोजगार

      कंपनी का नाम                                               कर्मचारियों की संख्‍या

  1. प्रोजेक्‍टस एंड डेवलपमेंट इं‍डिया लिमिटेड-            364
  2. हिन्‍दुस्‍तान प्रीफैब लिमिटेड-                                   241
  3. इंजीनियरिंग प्रोजेक्‍टस (इंडिया) लिमिटेड-              363
  4. ब्रिज एंड रूफ कार्पोरेशन इंडिया लिमिटेड-           1166
  5. हिन्‍दुस्‍तान न्‍यूज प्रिंट लिमिटेड (सब्सिडरी-               764
  6. स्‍कूटर्स इंडिया लिमिटेड-                                        121
  7. भारत पंप एंड कम्‍प्रेशरर्स लिमिटेड-                        990
  8. सीमेंट कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड-                747
  9. हिन्‍दुस्‍तान फ्लोरोकार्बन लिमिटेड (सब्सिडरी)-          88
  10. सेंट्रल इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स लिमिटेड-                                   366
  11. भारत अर्थमूवर्स लिमिटेड-                                        7185
  12. फेरो क्रैप निगम लिमिटेड-                                        826
  13. नागरनार स्‍टील प्‍लांट ऑफ एनएमडीसी-                   –
  14. एलॉय स्‍टील प्‍लांट दुर्गापुर-                                        –
  15. पवन हंस लिमिटेड-                                                 1000
  16. एयर इंडिया और इसकी पांच सब्सिडरी-                  11000
  17. एचएलएल लाइफ केयर-                                          2700
  18. इंडियन मेडिसिन्‍स एंड फार्मास्‍यूटिकल्‍स-                   126
  19. कामराजार पोर्ट लिमिटेड-                                        106
  20. इंडियन टूरिज्‍म डेवलपमेंट कार्पोरेशन-                      50
  21. कर्नाटक एंटी बॉयोटिक्‍स एंड फार्मास्‍यूटिकल्‍स-           38
  22. हिंदुस्‍तान एंटी बॉयोटिक्‍स लिमिटेड-                           1500
  23. बंगाल केमिकल्‍स एंड फार्मास्‍यूटिकल्‍स लिमिटेड-        195

ना रहेगी सरकारी कंपनियां, ना रहेगी सरकारी नौकरी, ना रहेगा आरक्षण

केंद्रीय केबिनेट के द्वारा इन कंपनियों के विनिवेश की मंजूरी 3 दिसंबर 2019 को दी थी, नीति आयोग एक नई लिस्‍ट बना रहा है, जिसमें बीपीसीएल, एलआईसी,आईडीबीआई बैंक को भी शामिल किये जाने की चर्चा है. अब सोचिये जब देश में सरकारी कंपनियां नहीं रहेंगी, तो इन कंपनियों में सरकारी भर्ती की डिमांड भी नहीं उठेगी. जब सरकारी भर्ती नहीं निकाली जायेगी तो आरक्षण भी नहीं देना होगा. इसका नुकसान आरक्षण का लाभ लेने वाले वर्ग के साथ सामान्‍य वर्ग के अभ्‍यर्थियों को भी होगा. क्‍यों‍कि कुल मिलाकर अगर 50 प्रतिशत नौकरियों में आरक्षण दिया जाता है, तो पचास फीसदी नौकरियां सीधे तौर पर अनारिक्षत वर्ग के युवाओं को मिलती है. जनसंख्‍या के लिहाज से देखे तो आरक्षित कैटेगरी की जनसंख्‍या अधिक है, उसमें कांपिटिशन का लेवल भी लगातार बढ़ता जा रहा है. कई भर्तियों में देखा गया है कि आरक्षित वर्ग का कटऑफ सामान्‍य वर्ग के कटऑफ से अधिक आया है. ऐसे में सरकारी नौकरी ना तो आरक्षित वर्ग को मिलेगी और ना ही अनारक्षित वर्ग के कैटेगरी के अभ्‍यर्थियों को… ये है कड़वा सच….

 

  

 

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