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बेरोजगारों के आंदोलन से क्‍यों पीछे हटी कोचिंग संस्‍थाएं?

बेरोजगारों के आंदोलन से क्‍यों पीछे हटी कोचिंग संस्‍थाएं?

जब छात्रों को संस्‍थाओं के संबंल की आवश्‍यकता थी, तब गायब हुए कोचिंग संचालक, तो  क्‍या छात्र भी करेंगे कोचिंग संस्‍थाओं का बहिष्‍कार 

भोपाल। मध्‍यप्रदेश में लाखों छात्र सोशल मीडिया और सड़कों पर बेरोजगारी की लड़ाई खुद लड़ रहे हैं, उनके साथ ना तो राजनेता दिख रहे है, और ना ही प्रदेश का मेन स्‍ट्रीम मीडिया.

हैरत की बात तो यह है कि बच्‍चे जिन कोचिंग संस्‍थाओं में पढ़ रहे है, वहां के संचालकों ने भी बच्‍चों के आंदोलन से दूरी बनाई हुई है. ऐसा क्‍युं. इसका जवाब किसी के पास नहीं है.

हम आपको कोचिंग संचालकों की मजबूरी और चालाकी के बारे में विस्‍तार से बताने जा रहे है.

पहले छात्रों के आंदोलन की बात करते है. मप्र में 4 सितंबर को भोपाल में रोशनपुरा चौराहे पर प्रदेश के दस हजार से अधिक छात्रों ने पुलिस की लाठियों के बीच अपनी आवाज बुलंद की थी.

इसमें लड़कों के साथ लड़किया भी शामिल थी. पुलिस के सामने खड़ी होकर बेरोजगारों के पक्ष में लड़कियों ने प्रदशर्न कर सरकार को आईना दिखाने का काम किया था.

इसके बाद कहा जा रहा था कि सरकार जल्‍द ही भर्तियां लाएगी. हालांकि ऐसा हुआ नहीं.

16 सितंबर के बाद रोज बेरोजगार छात्र अपनी अपनी पंचायतों में जाकर सरकारी भर्ती निकालने के लिए अधिकारियों को ज्ञापन सौंप रहे है.

जिलों में कलेक्‍टर, एसडीएम से मिलकर नौकरी देने की मांग सरकार तक पहुंचाने की गुहार लगा रहे है.

सरकारी भर्ती प्रक्रिया फ‍िर से शुरू करने की बात दोहराई

इधर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा लगातार टिविट कर सरकारी भर्ती प्रक्रिया फ‍िर से शुरू करने की बात को दोहराया है.

इसके बाद से छात्र लगातार आशा कर रहे है, जल्‍द ही नोटिफ‍िकेशन आएंगे. 22 सितंबर तक कोई नोटिफ‍िकेशन नहीं आया है.

 

चुनिंदा कोचिंग संस्‍थाएं ही आगे आई 

 

छात्रों के आंदोलन में बढ़चढ़ कर भाग ले रही है तपोभूमि क्‍लासेस.

कोचिंग के अवधेश भदौरिया ने 4 सितंबर को हुए आंदोलन के दौरान पुलिस की लाठियां खाई और छात्रों के पक्ष में लगातार आवाज उठा रहे है.

प्रदेश में छोटी बड़ी मिलाकर चार हजार से अधिक कोचिंग संस्‍थाएं है। इनमें कई कोचिंग संस्‍थाओं के संचालकों का छात्रों पर बहुत प्रभाव है.

लेकिन इनमें से अधिकांश कोचिंग संस्‍थाओं ने आंदोलन से दूरी बना ली.

 

मनचाहा पैसा लेती है कोचिंग संस्‍थाएं  

 

सभी को यह जानकारी में होगा कि शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य में माता पिता मनचाहा पैसा खर्च करते है. कोचिंग संस्‍थाएं भी यह जानती है.

इसलिए छोटी छोटी कोचिंग संस्‍थाओं का टर्न ओवर लाखों में होता है. बड़ी और नामी कोचिंग संस्‍थायें उद्योग का रूप धारण कर चुकी है.

कोचिंग संचालक करोड़ों की कारों में आकर छात्रों को लैक्‍चर दे रहे हैं. अंदाजा लगा लीजिये इन कोचिंग संचालकों की कमाई के बारे में.

अधिकांश कोचिंग संस्‍थायें सरकार के पास टैक्‍स जमा नहीं करती है.

आमदनी कम कर मामूली टैक्‍स जमा करती है। इसलिए कोचिंग संचालकों को डर था कि अगर वह आंदोलन में उतरे तो उन पर छापे भी पड़ सकते है.

 

आंदोलन का रूप और बड़ा होता…

 

अगर प्रदेश की सभी कोचिंग संस्‍थायें छात्रों के आंदोलन में साथ आकर मैदान में आती, तो आंदोलन का स्‍वरूप और भी बड़ा होता.

आपको पता होगा कि जब भोपाल में एमपी नगर में कोचिंग स्‍ट्रीट पर खानपान के ठेले लगाने जा रही थी, तो वहां के संचालक अपने छात्रों को लेकर सड़कों पर उतर गए थे.

तत्‍काल सरकार हरकत में आई और अपना फैसला पलट दिया था. काश कि इस मौके पर कोचिंग संस्‍थाएं छात्रों के पक्ष में आती…

शायद अब तक सरकार को नोटिफ‍िकेशन देना पड़ जाता.

 

कमाई छात्रों से ही करती है कोचिंग संस्‍थायें

 

यहां उल्‍लेखनीय है कि कोचिंग संस्‍थाओं की कमाई तो छात्रों के माता पिता के द्वारा दिए गए पैसों से ही होती है.

फ‍िर क्‍यों नहीं आई छात्रों के साथ. लाखों करोड़ों के टर्नओवर छात्रों के पैसे पर ही बनता है.

इसलिए कोचिंग संचालकों को नैतिक आधार पर आकर छात्रों के साथ आना चाहिये था.

 

इस विकल्‍प से बंद होगी कोचिंग संस्‍थाओं की कमाई

 

छात्र अपनी एक कोचिंग संस्‍थाएं खुद बनाए. बहुत मामूली फीस लेकर छात्रों को पढ़ाये.

जो भी छात्र सफल हो जाए, उसकी क्‍लास अरेंज कराए और वह छात्रों को परीक्षा को क्‍लीयर करने के लिए टिप्‍स दे.

कोचिंग संस्‍थाओं में कुछ अलग नहीं पढाया जाता है, जिस छात्र ने दो साल किसी कोचिंग संस्‍था में पढ़ाई की है, वह सब जान जाता है.

कहने के अर्थ है वह सेल्‍फ स्‍टडी के लिए तैयार हो जाता है. जेनरिक दवाओं की तर्ज पर जेनरिक कोचिंग संस्‍थाएं भी बनाई जाना चाहिये.

जिससे गरीब घर के छात्रों को पढ़ाई करने का समान अवसर मिल सके.

वैसे अधिकांश फैलियर, जो परीक्षा पास नहीं कर पाए, आगे जीवन में कोचिंग संस्‍थाओं में हाथ आजमाते है, और सफल भी हो जाते है…

 

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