मप्र से एमए समाजशास्त्र करने वाले हजारों योग्य युवा सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य…
– मप्र के सामाजिक न्याय एवं निशक्तजन कल्याण की अदूररर्शिता, क्या हर साल नई डिग्री ले युवा?
रावेन्द्र पांडे, भोपाल
एमपी अजब है, गजब है,यह टैग लाइन तो सबने सुनी ही है. एमपी के अफसर इस टैगलाइन को समय समय पर चरितार्थ भी करते है. ऐसा ही एक मामला सामने आया है. जिसमें मप्र के सामाजिक न्याय एवं निःशक्तजन कल्याण विभाग की अदूररर्शिता सामने आई है. जिसमें विभाग के अफसरों ने एक झटके में प्रदेश के विश्वविद्यालय से एमए समाजशास्त्र की पढ़ाई करने वाले युवाओं को सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है…हैरत की बात तो यह है कि सामाजिक न्याय एवं नि शक्तजन कल्याण विभाग के द्वारा वर्ष 2016 से लेकर 2020 तक एक भी पद पर भर्ती नहीं की है. फिर भी सहायक संचालक के पद के लिए सामाजिक कल्याण विभाग ने योग्यता शर्तों में बदलाव किया है. मध्यप्रदेश में एमए समाजशास्त्र और MSW पोस्ट ग्रेजुएट को समकक्ष माना जाता रहा है और अब भी कई विभागों में समकक्ष माना जाता है. लेकिन प्रदेश का सोशल जस्टिस विभाग कई राज्यों और यूपीएससी की योग्यता को पीछे छोड़ते हुए सहायक संचालक के पद के लिए सिर्फ MSW स्नातकोत्तर को ही योग्य मानकर अर्हता को संशोधित कर दिया है.इस कदम से राज्य सरकार के अफसरों की सोच और समझ पर भी सवाल खड़े हो रहे है.
कैसे कर दिया एमए समाजशास्त्र के युवाओं को अयोग्य …
वर्ष 2016 से 2020 तक एम समाजशास्त्र वाले युवाओं की एक भी पद पर भर्ती नहीं की गई है. लेकिन योग्यता में जरूर बदलाव कर दिया है. यहां सवाल ये भी उठता है कि विभाग ने यह कैसे तय कर लिया कि एमएसडब्ल्यू की डिग्रीधारी ही सहायक संचालक के पद पर योग्य होंगे और एम समाजशास्त्र के युवा अयोग्य. उम्मीदवार की योग्यता , कार्यकुशलता को जांचे बिना ही मनमौजी अंदाज में अर्हता नियमों में संशोधन कर अयोग्य कर दिया गया है.
क्या हर साल नई डिग्री ले एमए समाजशास्त्र वाले
अब से प्रदेश के युवाओं को हर साल अपनी डिग्री बदलते रहना होगा. क्या भरोसा योग्य अफसर कब अयोग्य ठहरा दे. प्रदेश के युवा मेहनत कर चार साल डिग्री हासिल करे और सरकारी भर्ती का बेसब्री से इंतजार करते रहे. नई भर्ती तो नहीं आई नहीं और बैठे बैठे पूरानी डिग्री को साधारण कागज में बदल जाये. मानकर चलो जब तक युवा दूसरी नई डिग्री प्राप्त करे, तब प्रदेश के अफसर फिर से योग्यता में परिवर्तन कर दे… मतलब युवा जीवन भर डिग्री ही बंटोरता रहे और प्रदेश की सरकार नई भर्ती लाने के बजाय हर चार साल में शैक्षिक योग्यता में परिवर्तन करती रहे.
दो उदाहारण सरकार में बैठे अफसरों को देखना चाहिये
UPPSC जब अपने यहां सामाजिक कल्याण विभाग में भर्ती करता है, तब वह समाजशास्त्र की डिग्री को अहमियत देता है,
जबकि एमपीपीएससी की भर्ती के द्वारा आयोजित होने वाली भर्ती में सामाजिक न्याय एवं निःशक्तजन कल्याण विभाग में सहायक संचालक के पद पर एमए समाजशास्त्र के बजाय एमएसडब्ल्यू या मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री मांगी जा रही है. इन उदाहरणों से प्रदेश के अफसरों की समझ को समझा जा सकता है.
क्या कहते है जिम्मेंदार